निम्न
विचार
तीव्रता से
फैलते है—
आप
हैरान होंगे
जानकर कि आपको
हमेशा अनार्य
वचनों में
आनंद मिलता है—क्यों? क्योंकि
जब भी कोई
अनार्य वचन आप
सुनते है
क्षुद्र तो
पहली तो बात
उसे एकदम समझ
पाते है। क्योंकि
वह आपकी भाषा
है। दूसरी बात
उसे सुनकर आप आश्वस्त
होते है कि
मैं ही बुरा
नहीं हूं,
सारा जगत ऐसा
ही है। तीसरा
उसे सुनते ही
आपको जो
श्रेष्ठता
का चुनाव है
वह जो चुनौती
है आर्य त्व
की, उसकी
पीड़ा मिट
जाती है। सब
उत्तरदायित्व
गिर जाता है।
ऐसा
समझें, फ्रायड ने
कहा कि मनुष्य
एक कामुक
प्राणी है। यह
अनार्य वचन है
असत्य नहीं
है; सत्य
है लेकिन
शुद्र सत्य
है। निकृष्टतम
सत्य है।
आदमी की कीचड़
के बाबत सत्य
है। कि आदमी
के बाबत सत्य
नहीं है कि
आदमी सेक्सुअल
है; कि
आदमी के सारे
कृत्य
कामवासना से
बंधे है,
वह जो भी कर
रहा है
कामवासना ही
है।
छोटे
से बच्चे से
लेकिर बूढे
आदमी तक सारी
चेष्टा
कामवासना की
चेष्टा है; यह
सत्य है,
लेकिन शूद्र
सत्य है। यह
निम्नतम सत्य
है—कीचड़ का, लेकिन सारी दुनिया
में इस कीचड़
के सत्य ने
लोगों को बड़ा
आश्वासन
दिया। लोगों
ने कहा, तब
ठीक है, तब हम
ठीक है,
जैसे है फिर
बुराई नहीं
है। फिर अगर
चौबीस घंटे
कामवासना के
संबंध में ही
सोचता हूं और
नग्न स्त्रियां
मेरे सपनों
में तैरती है तो
जोकर रहा हूं
वह नैसर्गिक
है। अगर मैं
शरीर में ही
जीता हूं तो
यह जीना ही तो वास्तविक
है। फ्रायड कह
रहा है।
फ्रायड
ने हमारे निम्नतम
को परिपुष्ट
किया, इसलिए
फ्रायड के वचन
थोड़े ही
दिनों में
सारे जगत में
फैल गये। जितनी
तीव्रता से
साइको
एनालिससि का, फ्रायड का
आंदोलन फैला,दुनिया में काई
आंदोलन नहीं
फैला। महावीर
को पचीस सौ
साल हो गये। उपनिषदों
को लिखे और
पुराना समय
हुआ। गीता कहे
और भी समय व्यतीत
हो गया,
पाँच हजार साल
हो गये। पाँच
हजार सालों
में भी उन्होंने
कहा है, वह
इतनी आग की
तरह नहीं फैला,जो फ्रायड
ने पिछले पचास
सालों में
सारी दुनिया
को पकड़ लिया—साहित्य,फिल्म,गीत, चित्र सब
फ्रायडियन हो
गये है। हर
चीज फ्रायड के
दृष्टिकोण
से सोची और
समझी जाने लगी
है। क्या
कारण होगा?
अनार्य
वचन हमारे निम्नतम
को पुष्ट
करते है। जब
भी काई हमारे निम्नतम
को पुष्ट
करता है तो
हमें राहत
मिलती है, हमें लगता
है कि ठीक है, हममें कोई गड़बड़
नहीं है।
अपराध का भाव
छूट जाता है।
बेचैनी छूट
जाती है कि
कुछ होना है, कि कहीं
जाना है,
कि कोई शिखर
छूना है। सीधी
जमीन पर चलने
की स्वीकृति
आ जाती है।
कोई निंदा
नहीं, आदमी
ऐसा ही है।
सभी आदमी ऐसे
ही है।
इसलिए
हम सब दूसरों
के संबंध में
बुराई सुनकर प्रसन्न
होते है। कोई
निंदा करता है
किसी की, हम प्रसन्नता
और भी ज्यादा
होती है। क्योंकि
यह पक्का हो जाता
है कि महात्मा
वहात्मा कोई
हो नहीं सकता, सब ऊपरी
बातचीत हे। है
तो सब मेरे ही
जैसे किसी का
पता चल गया है
और किसी का
पता नहीं चला
है।
तो
जब भी आपको
किसी की निंदा
में रस आता
है। तब आप
समझना कि आप क्या
कर रहे है। आप
अपने निम्नतम
को पुष्ट कर
रहे है। आप यह
कह रहे है कि
अब कोई चुनौती
नहीं, कोई चैलेंज
नहीं; कहीं
जाना नहीं कुछ
होना नहीं। जो
मैं हूं—इसी
कीचड़ में मुझे
जीना है। और
मर जाना है।
यही कीचड़ जीवन
है।
अनार्य
वचन बड़ा सुख
देते है। बहुत
अनार्य वचन
प्रचलित है।
हम सबको पता
है कि अनार्य
वचन तीव्रता
से फैलते जा
रहे है। और
धीरे-धीरे हम
यह भी भूल गये
है कि वे
अनार्य वचन है।
सब चीजों को
जो लोएस्ट
डिनामिनेटर
है,
जो निम्नतम
तत्व है,
उससे समझाने
की कोशिश चल
रही है। आदमी
को रिडयूस
करके आखरी चीज
पर खड़ा कर
देना है। जैसे
हम आदमी को काटें-पीटे
तो क्या
पायेंगे।
जो
श्रेष्ठ तम है, वि
हमारे उपकरणों
से छूट जाता
है। अगर आदमी
के व्यवहार
की हम जांच
पड़ताल करें
तो क्या मिलेगा? कामवासना
मिलेगी,
वासना मिलेगी, दौड़
मिलेगी,
महत्वाकांक्षा
की। फिर हर श्रेष्ठ
चीज को हम
निकृष्ट से
समझा लेंगे
ऐसे ही जैसे
हम कहेंगे,
कमल में क्या
रखा है कीचड़ ही
तो है।
यह
एक ढंग हुआ।
इससे हम कीचड़
को राज़ी कर
लेंगे कि कमल
होने की मेहनत
में मत लग। कमल
में भी क्या
रखा है बस
कीचड़ की है।
तो कीचड़ की
कमल होने की
जो आकांशा
पैदा हो सकती
थी,
वह कुंद हो
जायेगी।
कीचड़ शिथिल
होकर बैठ जायेगी।
अपनी जगह क्यों
व्यर्थ दौड़
धूप करना,
क्यों
परेशान होना।
अनार्य
वचन सुख देते
है। आर्य वचन
दुःख देते है।
महावीर कहते
है जो आर्य
वचन में आनंद
ले सके, वह ब्रह्मण
है। भला वह
अभी आर्य हो न
गया हो। लेकिन
आर्य वचनों मे
आनंद लेने का अर्थ
यह है की
चुनौती स्वीकार
कर रहा है।
जीवन के शिखर
तक पहुंचने की
आकांशा को
जागने दे रहा
है।
आर्य
वचन में आनंद
लेने का अर्थ
है हम संभावना
का द्वार खोल
रहे है।
ओशो
महावीर-वाणी, भाग—2
प्रवचन—सत्रहवां,
दिनांक
1सितम्बर, 1973,
पाटकर
हाल बम्बई,
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