मेरे
पास एक नहीं बल्कि चार घोड़े थे। एक
मेरा अपना था और
तुम्हें मालूम है कि मैं कितना ‘फसी’ जिद्दी हूं, आज भी रॉल्स रॉयसेस में कोई दूसरा
नहीं बैठ सकता। यह सिर्फ फसीनेस, जिद्दी पन है।
उस समय भी
मैं ऐसा ही था। कोर्इ नहीं यहाँ
तक कि मेरे नाना भी मेरे घोड़े पर सवार नहीं हो सकते थे। निश्चित ही मैं दूसरों के
घोड़ों पर सबरा हो सकता था। दोनों मेरे नाना और नानी के पास एक-एक घोड़ा था।
भारतीय गांव की स्त्री का घुड़सवारी करना
कुछ अजीब सा फासले पर मेरे पीछे-पीछे बंदूक लिए चलता था।
नियति भी अजीब है, मैंने अपने जीवन में किसी
का कोई नुकसान नहीं किया—अपने सपने में भी नहीं। मैं तो शुद्ध शाकाहारी हूं। लेकिन
भाग्य का खेल देखो कि बचपन से ले कर अब तक मेरी रक्षा के लिए एक पहरेदार सदा साथ
रहा है। न जाने क्यों लेकिन भूरा से लेकर अब तक मैं कभी बिना पहरेदार के नहीं
रहा। आज भी या तो मेरे आगे चलते है या मेरे पीछे पर सदा साथ ही रहते है। भूरा ने
सारा खेल आरंभ किया।
तब भी जब मैं बच्चा था, मैं समझ सकता था कि
घोड़े पर सवार भूरा कुछ फासले पर मेरे पीछे क्यों चलता है। क्योंकि दो बार मेरे
अपहरण की कोशिश की गई थी। मैं नहीं जानता कि किसी को मुझमें इतनी दिलचस्पी क्यों
थी। अब कम से कम मैं समझ सकता हूं। मेरे नाना हालांकि पश्चिमी मुल्कों के स्तर से
तो बहुत अमीर नहीं थे, लेकिन उस गांव में वे बहुत अमीर थे। डकैत...यह अँग्रेजी शब्द
नहीं है। यह हिंदी शब्द डाकू से बना है। लेकिन उस अर्थ में अंग्रेजी भाषा दुनिया
की सब भाषाओं से उदार भाषा है। हर वर्ष यह दूसरी भाषाओं के आठ हजार शब्दों को
अपनाती जाती है। एक दिन यह सारी दुनिया की भाषा बन जाएगी, कोई इसे रोक नहीं सकता।
दूसरी तरफ अनय भाषाएं बहुत झिझकती है, सिकुड़ती
जा रही है। वे शुद्धता में भरोसा करती है। कि कोई दूसरी भाषा के शब्दों का
प्रवेश न हो जाए। स्वभावत: वे छोटी और अविकसित रह जाती है। अंग्रेजी का शब्द डकैत,
इसका अर्थ है लुटेरा। सिर्फ साधारण चोर नहीं पर जब हथियारों से लैस होकर कुछ लोगों
का दल बड़े संगठित ढंग से लूटपाट करता है, तब वह डकैती करते है।
तब भी मैं छोटा था..;भारत में अमीरों के बच्चों
को चुराना आम बात थी, और फिर उनके मां-बाप
को धमकी दी जाती थी कि अगर वे डाकुओं को पैसा नहीं देंगे तो बच्चे के हाथ
काट दिए जाएंगे।
दो बार उन्होंने मेरा अपहरण करने की कोशिश
की । दो कारणों से मैं बच गया। एक था मेरा घोड़ा, जो बहुत ताकतवर था अरबी घोड़ा और
दूसरा हमारा नौकर, भूरा। मेरे नाना ने उसे हवा में बंदूक चलाने को कहा हुआ था।
अपहरण करने बालों पर नहीं, क्योंकि वह जैन धर्म के विरूद्ध है। लेकिन उन्हें
डराने के लिए तुम हवा में बंदूक चला सकते हो। मेरी नानी ने भूरा के कान में कहा,
मेरे पति तुमसे जो कह रहे है उस पर ध्यान मत देना। पहले तुम हवा में गोली चला
सकते हो लेकिन अगर उससे काम न चले, तो याद रखना, अगर तुमने उन पर गोली न चलाई तो
मैं तुम्हें गोली मार दूंगी।
और सच वे अच्छी निशानेबाज थी। मैंने उन्हें
बंदूक चलाते देखा है। मुझे मालूम था, भूरा को मालूम था क्योंकि यद्यपि उन्होंने
यह बात भूरा के कान में धीरे से कहीं था, लेकिन वह कानाफूसी नहीं थी, इतने जोर से
भी की सारे गांव ने इसे सुन लिया था। वे जो कहती है वह करती भी है। मेरे नाना तो
दूसरी और देखने लेंगे। वे इतने दम खम वाली स्त्री थी कि अगर जरूरत पड़ती तो मेरे
नाना को भी गोली मार सकती थी, मेरा अर्थ शाब्दिक से भी खतरनाक होता है।
तभी से, यह अजीब है... मुझे बहुत आश्चर्य
होता है कि मैंने तो कभी किसी का नुकसान नहीं किया, फिर भी कई बार मेरे जीवन खतरे
में पडा है। कई बार मुझे मारने की कोशिश की गई है। मुझे आश्चर्य होता है कि एक न
एक तो जीवन का अपने आप अंत होना ही है। फिर क्यों कोई इस को बीच में ही समाप्त
करना चाहते है। इससे उन्हें क्या मिलेगा? अगर कोई एक बार मुझे समझा दें कि
इससे उन्हें क्या लाभ होगा तो मैं इसी क्षण श्वास लेना बंद कर दूँ।
जिस आदमी ने मुझे मारना चाहा था, उससे एक
बारह मैंने पूछा था—अंत में वह मेरा संन्यासी बन गया था इसलिए मुझे उससे यह पूछने
का अवसर मिला गया। मैंने पूछा, अब हम दोनों अकेले है, बताओ कि तुम मुझे क्यों
मारना चाहते थे।
उन दिनों बंबई में वुड लैंड में मैं लोगों से
अपने कमरे में अकेले ही संन्यास देता था। मैंने कहां, हम दोनों यहां अकेले है।
मैं तुम्हें संन्यास दे सकता हूं, इसमें कोई समस्या नहीं है। पहले संन्यासी बन
जाओ। फिर मुझे बताओ के मुझे क्यों मारना चाहते थे, तुम्हारा उदेश्य क्या था।
अगर तुम मुझे इस का करण बता दो तो मैं अभी और यहां तुम्हारे सामने श्वास लेना
बंद कर दूँगा।
यह सुन कर वह रोने लगा उसने मेरे पैर पकड़
लिए। और मैंने कहा कि: ‘इससे काम नहीं चलेगा। तुम्हें बताना पड़ेगा कि मुझे मार
डालने का उदेश्य क्या था।’
उसने
कहां: ‘मैं सिर्फ बेवकूफ था। मैं क्या बताऊ? बताने के कुछ भी नहीं है, मैं
पागल हो गया था।’
शायद इसी कारण से मुझे जैसे निरीह व्यक्ति
पर कई बार हमले हुए और मुझे जहर भी दिया गया।
लेकिन जब उन्होंने भूरा को कहा
था कि ‘अगर कोई मेरे बच्चे को हाथ भी लगाए तो तुम सिर्फ हवा में गोली नहीं
चलाओगे, क्योंकि हम जैन धम्र में विश्वास करते है...वह विश्वास ठीक है लेकिन
सिर्फ मंदिर में ही। बाजार में हमें वैसा ही व्यवहार करना पड़ेगा जैसा दूसरे लोग
करते है। और सारा संसार तो जैनी नहीं है, हम कैसे हमारे जैन धर्म के अनुसार व्यवहार
कर सकते है।’
मैं उनके इस सीधे साफ तर्क समझ सकता हुं। अगर
तुम ऐसे आदमी से बात कर रहे हो जो अंग्रेजी नहीं जानता, तो तुम उससे अंग्रेजी में
बात नहीं कर सकते हो। अगर तुम उसकी ही भाषा में बात करो तो संवाद की ज्यादा
संभावना है। विभिन्न दर्शन, विभिन्न भाषाएं है। यह साफ-साफ नोट हो जाने दो (।
विभिन्न दर्शन या फिलासफियों का अर्थ कुछ और नहीं है, वे केवल भाषाएं है।
और जब मैंने मेरी नानी को भूरा को कहते सूना,
‘जब कोई डाकू मेरे बच्चे को चुराना चाहे तो उसके साथ उसी भाषा में बोलों जिस भाषा
को वह समझता है। उस क्षण जैन धम्र को भूल जाओ।’ तो उस क्षण यह बात मेरी समझ में आ
गई। मेरे नाना परिस्थिति को अच्छी तरह से समझ ही गए। क्योंकि उन्होंने अपनी
आंखे बंद कीं और अपना मंत्र जपने लगे।
नमो अरिहंताणम् नमो नमो
नमो सिद्धाणम् नमो नमो....
मेरी नानी में भी यही सदा सही होने का गुण
था। उन्होंने भूरा से कहा, ’क्या तुम सोचते हो कि ये डाकू जैन धर्म को मानते है? और
ये तो सठिया गए है—उन्होंने मेरे नाना की और इशारा किया जो उस समय अपना मत्रं
दोहरा रहे थे। उन्होंने कहा: वे तुम्हें सिर्फ हवा में गोली चलाने को कह रहे है
क्योंकि हमें किसी को मारना नहीं चाहिए। उन्हें अपना मंत्र पढने दो। उनसे मारने
के लिए कौन कह रहा है? तुम तो जैन नहीं हो।‘
उस क्षण मुझे ऐसा लगा की भूरा अगर जैन होता तो आज इसकी नौकरी
गई। उसने कहा मैं जैन नहीं हु, इसलिए मुझे कोई परवाह नहीं है। मेरी नानी ने कहा
कि, ‘तब मैंने जो कहा है उसे याद रखना और इस बूढे बेवकूफ की बात को भूल जाना।‘
तुम्हें आश्चर्य होगा की मेरे सब भाई बहन
जो कि करीब एक दर्जन है, मुझे छोड़ कर सभी मेरी मां को मां कहते है, लेकिन मैं अकेला
ही उन्हें भाभी कहता हूं। भारत में सब लोगों को इस बात पर बहुत हैरानी होती थी,
कि मैं अपनी मां को भाभी कहता हूं। क्योंकि इसका अर्थ है, बड़े भाई की पत्नी।
हिंदी में बड़े भाई को भैया कहते है, और की पत्नी बड़े भाई की पत्नी को भाभी कहते
है। मेरे चाचा उन्हें भाभी कहते है, जो बिलकुल ठीक है। फिर मैं उन्हें अभी तक भी
भाभी क्यों कहता हूं। मेरा उन्हें भाभी पुकारने का कारण यह है कि मैं नानी को
मां मानता था।
बचपन में अपनी नानी को अपनी मां समझने के बाद
किसी और को मां कहना मुश्किल था। मैंने हमेशा उनको नानी कहा है और मैं यह भी जानता
हूं कि वे मेरी असली मां नहीं थी, लेकिन उन्होंने ही मुझे सदा मातृत्व का दुलार
दिया है। मेरी वास्तविक मां तो मुझसे कुछ दूर रहीं—कुछ बेगानी सी, यद्यपि मेरी
नानी मर गई है, फिर भी वे मेरे बहुत नजदीक है। यद्यपि मेरी मां अब संबुद्ध हो गई
है, फिर भी कहता हूं। मैं उनको मां कह ही नहीं सकता। क्योंकि ऐसा कहना एक प्रकार
से मेरी मृत नानी के प्रति विश्वासघात करना है। नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकता।
मेरी नानी किसी तरह मेरी आत्मा का अंग बन गई
है। एक बार जब एक चोर हमारे घर में घुस आसा तो वे निहत्थी उसके साथ लड़ी। तब मुझे
मालूम हुआ कि ऐ स्त्री कितनी भयंकर हो सकती है। अगर मैं बीच-बचाव न करता तो वे उस
बेचारे आदमी को मार ही डालती। मैंने कहा, नानी आप क्या कर रही है। मेरी खातिर
इसे छोड़ दो, उन्होंने उस आदमी को छोड़ दिया। वह बेचारा भरोसा ही नहीं कर था, कि
थोड़ा सा और गला दबाती तो बेचारा मर जाता।
जब उन्होंने भूरा से कहा तो मुझे मालूम था
कि वे जो कह रही है करेंगी भी। भूरा भी जानता था कि उनके शब्दों का यही अर्थ है
जो वे कह रही है। तब मेरे नाना ने मंत्र जपना शुरू कर दिया तो मुझे मालूम हो गया
कि वे भी समझ गए कि नानी के कहने का अर्थ
है।
दो बार मुझ पर हमले हुए। और मुझे तो बड़ा मजा
आया, मेरे लिए वह रोमांचक अनुभव था। सच तो यह है कि गहरे में मैं जानता चाहता था
कि अपहरण का क्या मतलब होता है। वही हमेशा मेरे चरित्र कि विशेषता रही है कि मुझे
जोखिम उठाने में या खतरे का सामना करने में हमेशा बहुत मजा आता है। मैं अपने घोड़े
पर सवार होकर नाना के जंगलों में घूमा करता था, नाना ने वायदा किया था कि वे अपना
सब कुछ अपनी वसीयत में मेरे नाम कर देंगे। और उन्होंने ऐसा किया भी। उन्होंने और
किसी को एक पैसा भी नहीं दिया।
उनके पास हजारों एकड़ जमीन थी। हां उन दिनों
उसका कोई मूल्य नहीं था। लेकिन मूल्य से मुझे क्या मतलब नहीं है। उसका सौंदर्य
अनूठा था। वे बडे़-बडे़ वृक्ष, बडी झील और गर्मी में पके हुए आमों की सुगंध, मैं
वहां अपने घोड़े पर इतनी बार जाता था कि घोड़ा भी रास्ते को पहचान गया था।
अभी भी मैं वैसा ही हूं, और अगर कोई जगह मुझे
पसंद न आए तो मैं दुबारा वहां नहीं जाता। मैं मद्रास केवल एक बार गया हूं। सिर्फ
एक बार, क्योंकि मुझे वह शहर और खास कर वहां की भाषा बिलकुल पसंद नहीं आई। उस
भाषा को सुन कर ऐसा लगता था जैसे कि सब लोग एक-दूसरे से झगड़ा कर रहे हों। मुझे
ऐसी भाषा पसंद नहीं है। इसलिए मैंने मेजबान से कहा: ‘यहां ठहरने का यह मेरा पहला
और अंतिम अवसर है।’
उन्होंने पूछा: ‘ऐसा क्यों कह रहे हैं कि
यह अंतिम अवसर है।’
मैंने कहा: ‘मु झे
इस तरह की भाषा पसंद नहीं है, सब लड़ते हुए से लगते है। मैं जानता हूं कि वे झगड़
नहीं रहे, वे ऐसा बोलता ही है।’
कृष्णमूर्ति को मद्रास पसंद है, लेकिन वह
उनकी बात है। वे हर वर्ष वहां जाते है। वे तमिल है। सच तो यह है कि उनका जन्म
मद्रास के निकट हुआ था। वे मद्रासी है, इसलिए उनका वहां जाना एकदम तर्कयुक्त है।
मैं बहुत जगहों पर जाता था। क्यों? का
कोई सवाल ही नहीं हे। मुझे सिर्फ जाने में मजा आता था। मुझे घूमते रहने मैं मजा
आता है। तुम्हें आया? घुमक्कड़, मैं ऐसा व्यक्ति हूं जिसे
कोई धंधा नहीं है—यहां वहां, मैं सिर्फ घुमक्कड़ हूं। बिना वजह घूमते रहता हूं।
मैं अपने घोड़े पर जाता था और राजकुमारी
डायना के विवाहा के जुलूस के घोड़ों को देख कर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि इंग्लैंड
में भी ऐसे घोड़े हो सकते है। महारानी तो बिलकुल साधारण है, सभ्यता वश मैं कुरूप नहीं
कहना चाहता। और राजकुमार चार्ल्स भी राजकुमार जैसा दिखाई नहीं देता। उसके चेहरे
को देखो। उस तरह के चेहरे को तुम राजकुमार करोगे? शायद इंग्लैड में...ओर मेहमान, बडे़-बडे़
लोग खास कर सबसे बड़ा पुरोहित, क्या कहते हो तुम उसे इंग्लैड में?
‘दि आर्चबिशप ऑफ केंट बरी’ कहते है।
आर्चबिशप, वाह, क्या नाम है। एक...(डैश डैश
डैश) के लिए। अन्यथा वे कहेंगे कि क्योंकि मैं ऐसे शब्दों का प्रयोग करता हूं
कि मैं एनलाइटेंड नहीं हो सकता। लेकिन मैं सोचता हूं कि दुनियां में सभी लोग समझ
जाएंगे कि ‘डैश डैश डैश’ का मेरा क्या मतलब है—आर्चबिशप भी समझ जाएगा। या क्या
पता, शायद एलजी रही भी हो तो उस समय मुझे उसका पता नहीं था। चह एक अजीब संयोग है
कि जिस वर्ष मैं बुद्धत्व को प्राप्त हुआ उसी साल मुझे एलर्जी हुई। अब तो मैंने
बुद्धत्व को भी छोड़ दिया है।
मैं अस्तित्व से कहता हूं कि इस एलर्जी को अब
दूर कर दो, ताकि में फिर से घोड़े की सवारी कर सकूँ। वह दि सिर्फ मेरे लिए ही नहीं
लेकिन मेरे संन्यासियों के लिए भी बड़ा महत्वपूर्ण होगा।
सिर्फ एक फोटो हे जिसमे मैं कश्मीरी घोड़े
पर सवार हूं। सारी दुनिया में इस फोटो को छापा जा रहा है। यह सिर्फ एक फोटो है,
असल में मैं सवारी नहीं कर रहा था, लेकिन चूंकि फोटोग्राफर घोड़े पर मेरी फोटो
लेना चाहता था, और मुझे वह आदमी, फोटोग्राफर पसंद आया। में उसे न न कर सका। वह
घोड़े और सामान लेकर आया था। तो मैंने कहा, ठीक है। मैं सिर्फ घोड़े पर बैठ गया। और तुम फोटो में भी देख सकते हो कि मेरी
मुसकुराहट असली नहीं है। वह तो फोटोग्राफर के अनुरोध पर लाई गई झूठी मुस्कुराहट
है।
परंतु अगर मैं समाधि के पार जा सकता हूं तो
कौन जानता है कि शायद मैं कम से कम घोड़ों की एलर्जी के भी पार हो जाऊँ। और तब
मेरे चारों और वही दुनिया हो सकती है।
वही झील...
वही पर्वत,
वही नदी...केवल नाना की कमी मुझे महसूस होगी।
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