जब मैं कमरे से बाहर जा रहा था तो तुम मुस्कुरा
रहे थे। लेकिन तुम्हारी मुस्कुराहट में उदासी थी। मैं इसको नहीं भूल सका। जब कि
मैं सब कुछ आसानी से भूल जाता है। लेकिन जब कभी मैं कठोर हाता हूं तो मैं इसे
नहीं भूल सकता। में दुनिया में सबको क्षमा कर सकता हूं, लेकिन अपने आप को नहीं कर
सकता। शायद मेरे न सोने का यही कारण था। मेरी नींद तो सिर्फ एक पतली पर्त है। उसके
नीचे मैं सदा जागता रहता हूं। इस झीनी सी पर्त
बड़ी आसानी से विचलित किया जा सकता है। लेकिन केवल मैं ही ऐसा कर सकता हूं
कोई और नहीं।
मुझे थोड़ा अफसोस हुआ। मैं ‘थोड़ा’ कह रहा
हूं, क्योंकि मेरे लिए थोड़ा अफसोस भी बहुत ज्यादा हो जाता है। मेरा सिर्फ एक
आंसू ही बहुत है। मुझे घंटों रो-रो करा अपने बाल नोचने की जरूरत नहीं है जो कि अब
हैं ही नहीं। कभी किसी ने यह नहीं सुना कि कोई अपनी दाढ़ी नोचता है। मैं नहीं
सोचता कि किसी भी भाषा में, यहां तक कि हिब्रू में भी ऐसा कोई मुहावरा है, अपनी
दाढ़ी नोचना और तुमको मालूम है कि यहूदियों और उनके बाइबिल के सब पैगंबरों की
दाढि़यां थी। यह तो एक प्राकृतिक नियम है कि अगर किसी को दाढ़ी है तो वह गंजा हो
जाएगा, क्योंकि प्रकृति सदा संतुलन बनाए रखती है।
अब मुझे फिर अपनी नानी की याद आ गई।
जब मैं छोटा था तब मुझसे कहा करती थी, ‘सुनो
राजा, कभी दाढ़ी मत बढ़ाना। मैं उन्हें कहता, आप इसकी बात क्यो करती है? मैं सिर्फ दस वर्ष का ही हूं और मेरी दाढ़ी अभी आई
नहीं है। तो इसकी बात क्यों करती है। उन्होंने कहा: ‘घर में आग लगने से पहले ही
कुआँ खोद लेना चाहिए।’
मैंने कहा: ‘यह तो बड़ी अजीब बात है। जब आप
पहले से ही जानती है तो इसे रोकने की कोशिश क्यों कि जा रही है? उन्होंने कहा: ‘मैं अपनी पूरी कोशिश कर रही हूं लेकिन
मुझे मालूम है कि तुम अवश्य दाढ़ी रहोगे। तुम्हारे जैसे लोग हमेशा दाढ़ी रखते
है। मैं तुम्हें ग्यारह साल से जानती हूं। इसका कोई कारण तो होगा, और वे इसके
बारे में सोचने लगी।’
इसका कोई विशेष कारण नहीं है, बस इतनी सी बात
है कि कोई हर रोज ‘शेव’ करने के लिए मूर्खों की तरह दर्पण के सामने खड़े रह कर
अपना समय बरबाद नहीं करना चाहता है। जरा सोचो कि अगर कोई दाढ़ी वाली औरत आईने में
अपने को देख रही हो तो वह कैसी दिखाई देगी। बिना दाढ़ी का पुरूष बिलकुल वैसा ही
दिखाई देता है। बात सीधी सी है कि इससे समय की बचत होती है। और तुम बेवकूफ दिखाई
देने से भी बच जाते हो—अपने ही दर्पण मैं।
लेकिन एक बात तो निश्चित है कि जब तुम दाढ़ी
बढाना शुरू करते हो तो सिर गंजा होने लगता है। प्रकृति संतुलन बनाए रखना कभी नहीं
भूलती। उसने तुम्हें बालों की एक निश्चित संख्या दी है और अगर तुम दाढ़ी बढ़ाने
लगे तो बजट को कहीं से तो कम करना पड़ेगा। किसी से भी पूछ लो—यह तो अर्थशास्त्र
का सीधा सा नियम है।
मुझे देव गीत की थोड़ी चिंता हो रही थी, मुझे
लग रहा था कि मैंने उसे ठेस पहुँचाई है। शायद मैंने पहुँचाई थी...शायद इसकी जरूरत
थी। इसलिए मेरी नींद की चिंता मत करो। अगर जरूरत हो तो मैं किसी भी क्षण अपने जीवन
को खो देने के लिए तैयार हूं...किसी राष्ट्रीय उद्देश्य के लिए नहीं; किसी राज्य
या जाति के लिए नहीं, वरन ऐसे किसी भी व्यक्ति के लिए जिसका ह्रदय अभी भी धड़क
रहा हो, जो अभी भी महसूस करता हो और जो अभी भी बच्चों जैसी हरकतें करता हो। याद
रखो, मैं कह रहा हुं जो बच्चों जैसी हरकतें करता हो। मेरा अर्थ है जो अभी भी बच्चा
है। अगर विकसित और परिपक्व हो सकता है भीतर से अखंड, इंटीग्रेटड़ हो जाए तो इसके
लिए मैं अपना जीवन न्योछावर करने को तैयार हूं। जब भी मैं इंटीग्रेशन शब्द को
प्रयोग करता हूं तो हमेशा मेरा तात्पर्य है बुद्धि सहित प्रेम। बुद्धि और प्रेम
का जोड़ अखंडता है।
अब यह बहुत बड़ा फुट नोट हो गया। अगर जार्ज
बर्नाड़ शा को माफ किया जा सकता है तो....सिर्फ माफ़ ही नहीं किया, नोबल-प्राइज़ भी दिया, तो तुम मुझे माफ़
कर ही सकते हो। और मैं तो नोबल प्राइज़ भी नहीं मांग रहा। अगर वे मुझे दें तो भी
मैं लेने से इनकार करूंगा। इसको मैं नहीं ले सकता, क्योंकि यह खून से भरा हुआ है।
नोबल प्राइज़ के साथ जो पैसा दिया जाता है।
वह खून से सना होता है। क्योंकि नोबल नामक यह आदमी बम बनाता था और पहले महायुद्ध
में इसने दोनों पक्षों को हथियार बेच कर अपार धनराशि इकट्ठी की थी। मैं तो उसके
पैसे को हाथ नहीं लगाना भी पसंद नहीं करूंगा। सच तो यह है कि कई बरसों से मैं ने
पैसे को हाथ ही नहीं लगाया। क्योंकि मुझे हाथ लगाने की जरूरत ही नहीं है। हमेशा
कोई मेरे लिए पैसे की फ़िकर करता है। और पैसा हमेशा गंदा होता है। सिर्फ नोबल
प्राइज़ को पैसा ही नहीं।
जिस आदमी ने नोबल प्राइज़ की स्थापना की वह
अपराध-भाव से भरा हुआ था। सिर्फ अपराध-भाव से छुटकारा पाने के लिए उसने नोबल
प्राइज़ की स्थापना की। यह बहुत अच्छा काम था। लेकिन यह तो ऐसा है कि जैसे पहले
किसी को मार ड़ालो और फिर कहो कि सर, खेद है, कृपया मुझे माफ़ कर दो। खून से सने
इस पैसे को मैं स्वीकार नहीं करुंगा।
जार्ज बर्नार्ड शा का बहुत आदर किया जाता था।
उसको नोबल प्राइज़ भी दिया गया था। उसकी छोटी-छोटी पुस्तकों की लंबी-लंबी
भूमिकाएँ है। समझ में नहीं आता कि पुस्तक भूमिका के लिए लिखी गई थी या भूमिका
पुस्तक के लिए लिखी गई थी। मुझे तो ऐसा लगता है कि पुस्तक भूमिका के लिए लिखी गई।
और मेरे विचार में यह बहुत ही सराहनीय ह।
वह यक एक लंबा प्रस्तावना नोट हो गया है। और
मेरे नींद के बारे में चिंता मत करो। लेकिन याद रखो कि अगर मैं कठोर हो जाऊँ तो
इसमें परेशान होने की कोई बात नहीं है।
हालांकि तुम सबको यह मालूम है कि किसी बात से
भी मेरे भीतर परिवर्तन नहीं हो सकता, कुछ चींजे मेरे शरीर और मन में अवश्य
परिवर्तन कर सकती है। मैं न तो शरीर हूं ओर न मन हूं, लेकिन इन दोनों के माध्यम
से मुझे काम करना होता है।
इस समय तो देख सकता हूं कि मेरे ओंठ सूखे है।
अब इतना बाहर से भी किया जा सकता है। मैं बोल रहा हूं, लेकिन यह सूखे होठ परेशान
कर रहे है। मैं काम चला लुंगा, लेकिन ये बाधा डाल रहे है। टुट जाएगा और मैं आरंभ
कर सकता हूं। धन्यवाद।
अब वह कहानी।
मृत्यु अंत नहीं है लेकिन वह सिर्फ समस्त
जीवन का चरम बिंदु है, पराकाष्ठा है। ऐसा नहीं है कि तुम समाप्त हो गए, बल्कि
तुम दूसरे शरीर में चले गए। पूर्व के लोग इसी को चक्र कहते है। यह घूमता रहता है,
घूमता रहता है। हां, इसको रोका जा सकता है, लेकिन इसको रोकने का उपाय मरते समय
नहीं किया जा सकता।
नाना की मृत्यु से मैंने सबसे बड़ा पाठ
यहीं सीखा। वे रो रहे थे और आंखों में आंसू भर कर वे हमें चक्र को रोकने के लिए कह
रह रहे थे। हमें समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें, चक्र को कैसे रोके। अब उनका चक्र
तो उनका चक्र था। हमें तो वह दिखाई भी नहीं दे रहा था। यह तो उनकी अपनी चेतना थी
और वे ही इसे करा सकते थे। इसलिए उनके आंसू वह रहे थे और उसे रोकने को हमसे
बार-बार कह रहे थे। जैसे कि हम बहरे हो, हमने उनसे कहा: ‘नाना आपकी बात को सुन
लिया है और हम समझ रहे है। कृपया आप चुप हो जाइए।’
उस क्षण कुछ हुआ, कुछ घटा। मैंने इसके बारे
में कभी किसी को कुछ नहीं बताया। शायद इससे पहले समय उपयुक्त नहीं था। मैं उनसे
कह रहा था, ‘आप चुप हो जाइए।’...उस कच्ची ऊबड़-खाबड़ सड़क पर बैलगाड़ी खड़खड़
करती हुई चल रही थी और वे कह रहे थे, राजा, चक्र को रोको, तुम सुन रहे हो। चक्र को
रोको।‘
मैं भी उनसे बार-बार कह रहा था, कृपया आप चुप
हो जाइए और मैं आपकी सहायता करने की कोशिश करूंगा।
मेरी नानी तो हैरान हो गई। उन्होंने अपनी
बड़ी-बड़ी आंखों से आश्चर्यचकित होकर मुझे देखा कि मैं क्या कह रहा हूं। और में
कैसे उनकी सहायता कर सकता हैं?
मैंने कहा: ‘इतना हैरान होने की कोई बात नहीं
है। अचानक मुझे अपने पिछले एक जीवन की याद आ गई है। इस मृत्यु को देख कर मुझे
अपनी एक मृत्यु की याद आ गई है।’
मेरा वह जन्म और मृत्यु तिब्बत में हुआ
था। वही एकमात्र ऐसा देश है जो वैज्ञानिक ढंग से जानता हे कि इस चक्र को कैसे रोका
जा सकता है। इसके बाद मैंने कुछ जपना आरंभ कर दिया। न तो मेरी नानी समझ सकी, न
मरते हुए नाना और न मेरा नौकर भूरा जो बहार बैठा हुआ बड़े ध्यान से सुन रहा था।
बारह-तेरह वर्ष के बाद मेरी समझ में आया कि वह क्या था। इतना समय लगा उसको खोजने
में। तिब्बत के इस कर्मकांड को ‘’बारदो-थोड़ाल’’ कहते है।
तिब्बत में जब कोई आदमी मरता है तो वे लोग
एक विशेष मंत्र का जाप करते है। उस मंत्र को बारदो कहते है। वह मंत्र उस मरते हुए आदमी से कहता है, ‘शांत हो जाओ,
मौन हो जाओ, अपने केंद्र पर जाओ और वहीं रहो। शरीर को कुछ भी हो, तुम केंद्र से मत
हटो। केवल साक्षी बने रहो। जो हो रहा है उसे होने दो, बीच में बाधा मत ड़़ालो। याद
रखो, याद रखो, कि तुम केवल साक्षी हो और वही तुम्हारा सच्चा स्वभाव है। अगर उसे
याद रखते हुए तुम मरोगे तो यह चक्र रूक जाएगा।’
मैंने अपने मरते हुए नाना को बारदो-थोड़ाल का
जाप किया, बिना यह जाने कि मैं क्या कर रहा हूं। अजीब बात तो यह थी की मैं जब इस
मंत्र का जप रहा था तो मेरे नाना इसको सुन कर बिलकुल शांत हो गए। शायद तिब्बत
भाषा का एक शब्द भी इससे पहले न सुना हो । उनको तो शायद यह भी नहीं मालूम था कि
तिब्बत नाम को कोई देश भी है। मृत्यु के समय में भी वे चुप और एकाग्र हो गए।
बारदो ने अपना काम किया, हालांकि वे उसे समझ नहीं सके। कभी-कभी वे बातें काम कर
देती है जो समझ में नहीं आती, क्योंकि तुम उन्हें नहीं समझ पाते इसलिए वे काम कर
देती है।
बड़े से बड़े सर्जन भी अपने बच्चे का आपरेशन
स्वयं नहीं कर सकता। क्यों? कोई
बड़े से बड़ा सर्जन अपनी प्रेमिका का आपरेशन स्वयं नहीं कर सकता। प्रेमिका को पत्नी
के रूप में परिवर्तित कर देना अपराध है। कानून तो इसकी सज़ा नहीं देगा, लेकिन
प्रकृति खुद इसकी सज़ा देती है। इसलिए कानून की कोई जरूरत नहीं है।
इस प्रकार प्रेमी को पति बना देने से इस
संबंध का सौंदर्य नष्ट हो जाता है। हसबेंड़, पति शब्द ही भद्दा है। यह उसी धातु
से बना है जिससे हसबेंड्री, ‘कृषि कर्म’ शब्द बना है। हसबेंड़, पति वह हे जो बीज
बोने के लिए स्त्री का उपयोग खेत की तरह करता है। दुनिया की हर भाषा से हसबेंड़,
पति शब्द मिटा देना चाहिए। यह शब्द अमानवीय है। प्रेमी तो समझ में आता है, लेकिन
पति नहीं।
मैं बारदो को दोहरा रहा था। हालांकि में उसका
अर्थ नहीं समझ रहा था। न ही मुझे मालूम था कि वह कहां से आ रहा है। क्योंकि मैंने
तब तक इसको नहीं पढ़ा था। लेकिन जब मैं उसका जाप कर रहा था तो उन विचित्र शब्दों
की आवाज से ही मेरे नाना शांत हो गए। उस मौन में ही उनकी मृत्यु हुर्इ।
मौन में जीना तो सुंदर है ही, लेकिन मौन में
मरना उससे भी अधिक सुंदर है। क्योंकि मृत्यु हिमालय की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट
जैसी है। जब कि किसी ने मुझे सिखाया नहीं फिर भी मौन के उस क्षण में मैंने बहुत
कुछ सीखा। मैंने अपने आपको अजीब शब्द दोहराते हुए देखा। इसके शाक ने मेरी चेतना
को नए स्तर पर पहुंचा दिया और मुझे एक नये आयाम में प्रविष्ट कर दिया। मैं एक नई
खोज पर निकल पडा—एक नई तीर्थयात्रा पर।
इस तीर्थयात्रा में मेरी भेंट जिन असाधारण,
अद्भुत लोगो से हुई उनकी संख्या उन अनोखे लोगों से कहीं अधिक है जिनका उल्लेख
गुरजिएफ ने अपनी पुस्तक ‘मीटिंग विद दि रिमार्केबल मैंने’ में किया गया है। बाद
में धीरे-धीरे मैं उनके बारे में बात करूंगा। आज मैं एक ऐसे ही अनोखे व्यक्ति के
बारे में बात करना चाहता हूं।
न तो उनका असली नाम मालूम है और न उनकी असली उम्र। लेकिन उनको लोग मग्गा
बाबा कहते थे। मग्गा यानी एक बड़ा कप। वे अपने हाथ में सदा एक मग्गा रखते थे। और
उसका उपयोग वे हर काम के लिए करते थे। चाय, दूध और भोजन तो उसमें डाला ही जाता था।
इसके अतिरिक्त लोगों द्वारा दिए गए पैसे भी उसमें रखे रहते थे। आवश्यकतानुसार वे
उस मग्गे का उपयोग कर लेते थे। जायदाद के नाम पर उनके पास यही एकमात्र मग्गा था।
इसलिए उनको मग्गा बाबा कहा जाता था। बाबा आदरसूचक शब्द है जिसका अर्थ है दादा
अर्थात पिता का पिता। हिंदी में मां के पिता को नाना कहते है और पिता के पिता को
बाबा कहा जाता है।
मग्गा बाबा इस धरती पर रहने बाले अनोखे व्यक्तियों
में से एक थे। चुने हुए लोगो में उनकी गिनती की जा सकती है। जीसस, बुद्ध, लाओत्से
के साथ उनकी गणना की जा सकती है। मैं उनके बचपन या उनके माता-पिता के बारे में कुछ
नहीं जानता। किसी को नहीं मालूम कि वे कहां से आए थे। उस शहर में वे अचानक एक दिन
दिखाई दिए थे।
वे बोलते नहीं थे। लोग उनसे कई प्रकार के
प्रश्न पूछते रहते थे। या तो बस चुप रहते थे। या लोग उनके पीछे ही पड़ जाते तो वे
चिल्ला-चिल्ला की निरर्थक शब्द बोलने लगते। लोग समझते कि वे कोई ऐसी भाषा बोल
रहे है जिसे ये नहीं जानते। वे भाषा को प्रयोग कतई नहीं कर रहे थे। वे तो केवल
अजीब तरह की आवाजें निकालते थे। जिसे—‘हिगलल, हूं, हूं गूलू हीगा ही ही।’ फिर वे रुकते और फिर कहते ‘ही ही ही’ सुनने बाले
समझते कि वे पूछ रहे हे कि क्या तुम समझ सके? तो वे कहते,
हां, बाबा। हां।
तक वे अपने मग्गे को दिखा कर इशारा करते।
भारत में इस इशारे का मतलब होता है। पैसा, पुराने जमाने में जब असली सोने और चाँदी
के रूपये चलते थे तब से यह इशारा प्रचलित है। लोग रुपयों केा जमीन पर फेंक कर
उसकी आवज से पता लगाते थे कि रूपया असली है या नहीं। असली सोने की आवाज अलग ही
होती थी, किसी दूसरे सिक्के की आवाज वैसी नहीं हाँ सकती थी। तो मग्गा बाबा एक
हाथ में अपने मग्गे को पकड़ कर दूसरे हाथ
से इशारा करते कि अगर तुम समझ गए हो तो इसमें पैसे डालों, और लोग उन्हें पैसे
देते।
यह सब देख कर मुझे इतनी हंसी आती कि मेरी
आंखों में आंसू आ जाते, क्योंकि असल में उन्होंने कुछ भी नहीं कहा था। उनको पैसे
का कोर्इ लालच नहीं था। वे एक आदमी से लेकर दूसरे को दे देते थे और उनका मग्गा
हमेशा खाली रहता था। कभी-कभार ही उसमें कुछ रहता था। वह एक मार्ग था—पैसे उसमें
आते चले जाते, भोजन उसमें आता और चला जाता, वह मग्गा खाली का खाली ही रह जाता। वे
उसको सदा साफ करते रहते। मैंने उन्हें सुबह, शाम और दोपहर को इसको साफ करते देखा है।
मैं तुम लोगों के सामने—‘तुम’ से मेरा मतलब
‘दुनिया’ से है—यह स्वीकार करना चाहता हूं कि मैं अकेला व्यक्ति था जिससे वे बात
करते थे ओर वह भी जब वे बिलकुल अकेले होते थे। जब दूसरे लोग वहां नहीं होते थे।
मैं बहुत रात बीते, शायद दो बजे सुबह उनके पास जाता था। क्योंकि उस समय उनको
अकेले पाए जाने की संभावना होती थी। सर्दी
की रातों में वे आग के पास अपने पुराने कंबल में लिपटे लेटे थे। मैं चुपचाप उनके
पास जाकर बैठ जाता और कुछ न बोलता, उन्हें परेशान न करता। यह एक कारण था कि वे
मुझसे बहुत प्रेम करते थे। जब कभी करवट बदलते समय उनकी आँख खुलती, वे मुझे वहां
बैठा हुआ देखते, तो वे अपने आप बोलने लगते।
वे हिंदी भाषी नहीं थे। इसलिए लोग समझते थे
उनसे गात करना मुश्किल है। लेकिन यह सच नहीं था। वे निश्चित ही हिंदी भाषी नहीं
थे, लेकिन वे हिंदी ही नहीं और भी अनेक
भाषाएं जानते थे। सबसे अधिक तो वे मौन की भाषा जानते थे और प्राय: सारा जीवन वे मौन ही
रहे। दिन के समय
वे किसी से बात नहीं
करते थे। लेकिन रात
को जब मैं बिलकुल अकेला
होता तो वे मुझसे बोलते थे। उनके कुछ
शब्दों को सुनना
सौभाग्य था।
मग्गा बाबा ने अपने जीवन के बारे में कभी कुछ नहीं कहा, लेकिन जीवन के
बारे में उन्होंने बहुत
सी बातें बताई। वे पहले व्यक्ति थे जिसने मुझसे कहा कि जीवन जितना दिखाई देता है
उससे कहीं अधिक है। इसके बाहरी
रूप पर ही मत रूक जाओ, इसकी गहराई में जाकर इसकी जड़ों तक
पहुँचों। वे अचानक
बोलने लगते और अचानक रूक जाते। यही उनका ढंग था। उन्हें बोलने के लिए राज़ी करने का कोई रास्ता
नहीं था। अपनी इच्छा से वे कभी बोलते थे। कभी नहीं बोलते थे। किसी
प्रश्न का वे उतर नहीं देते थे। और हम दोनों के
बीच का वार्तालाप
बिलकुल गुप्त रहता था। इसके बारे में कोई नहीं जानता था। पहली बार में इसके बारे में बता
रहा हूं।
मैंने बड़े-बड़े वक्ताओं को सुना है, उनकी
तुलना में ये कुछ भी नहीं थे। लेकिन उनके शब्द शुद्ध शहद थे—मीठे और पौष्टिक—इतने
अर्थपूर्ण, लेकिन उन्होंने मुझसे कहा, ‘जब मैं मर जाऊं तब तक तुम किसी से यह नहीं
कहोंगे कि मैं तुमसे बातें करता हूं। क्योंकि बहुत से लोग समझते हे कि मैं बहरा
हूं यह मेरे लिए अच्छा है कि वे ऐसा समझते है। बहुत से सोचते है कि मैं पागल हूं।
जहां तक मेरा सवाल है यह और भी अच्छा है। बहुत से बौद्धिक लोग यह समझने की कोशिश
करते है कि क्या कह रहा हूं। मैं तो कुछ भी नहीं कहता, जिबरिश, ऊटपटांग या ऊलजलूल
शबद बोल देता हूं। और उसमें से ये लोग जो अर्थ निकालते है उन्हें सुन कर मैं
हैरान रह जाता हूँ और मैं अपने से कहता हूं कि हे भगवान, जब इन प्रोफेसर,
विद्वानों, पंडितों और बौद्धिक लोगो की यह हालत है तो बेचारे जनसाधारण की क्या
दशा होगी? मैंने तो कुछ कह नहीं और
फिर भी दन लोगो ने अपनी व्याख्या तैयार कर ली।‘
न जाने क्यों वे मुझसे प्रेम करते थे—शायद
अकारण ही। सौभाग्य से मुझे बहुत से अद्भुत लोगों से प्रेम प्राप्त हुआ है। और मेरी इस सूची में प्रथम
नाम मग्गा बाबा का है।
दिन भर लोग उनको घेरे रहते थे। वे सचमुच एक
स्वतंत्र व्यक्ति थे, फिर भी वे एक इंच भी इधर-उधर नहीं जा सकते थे। क्योंकि
लोग उनको पकड़े रहते। वे उनको रिक्शा पर बैठा कर जहां चाहते वहां लें जाते। और वे
इनकार भी न करते, क्योंकि वक बहरे या गूँगे या पागल होने काक ढोंग करते थे। और वे
कभी ऐसा कोई शब्द नहीं बोले जो किसी शब्दकोश में पाए जा सके। न वे हां कहते थे
न वे ना—बस चले जाते।
एक दो बार तो उनको चुरा लिया गया। महीनों तक
वे गायब रहें, क्योंकि दूसरे शहर के लोग उनको चुरा ले गए थे। जब पुलिसवालों ने
उन्हें खोज लिया और उनसे पूछा कि क्या वे वापस जाना चाहते हे। तो उन्होंने
ऊटपटांग कुछ बोल दिया, ‘यडल, फडल, शडल।’
पुलिसवालों ने कहा: ‘’यह तो पागल आदमी है, हम
अपनी रिपोर्ट में क्या लिखे गे, यडल, फडल, शडल...इसका क्या अर्थ है, तो वे उस
शहर में तब तक रहें जब तक मूल शहर के लोग उनको चुरा कर न ले आए। वह मेरा शहर था
जहां पर मैं अपने नाना की मृत्यु के बाद रहता था।
मैं तो नियमित रूप से रोज रात को उनके पास
जाता था। एक नीम के पेड़ के नीचे वे रहते थे। वहीं रात को वे सोते थे। जब मैं
बीमार होता और मेरी नानी मुझे बाहर न जाने देती तब भी रात को वे सो जातीं तो मैं
चुपके से बाहर निकल जाता। मैं दिन में एक बार मग्गा बाबा के पास जरूर जाता, मुझे
जाना ही पड़ता, क्योंकि उनसे मुझे आध्यात्मिक पौष्टिकता प्राप्त होती थी।
जब कि उन्होंने कभी मेरा पथ-प्रदर्शन नहीं
किया, कोई दिशा-निर्देश नहीं किया, फिर भी उनके होने मात्र से, उनकी उपस्थिति से
ही मुझे बड़ी सहायता मिली। मेरी भीतर की सुप्त, अज्ञात शक्तियां उनकी उपस्थिति से
जाग्रत हो उठीं। उनके बारे में तो मैं भी नहीं जानता था। मैं मग्गा बाबा का बहुत
कृतज्ञ हूं। उस समय मैं तो एक छोटा सा बच्चा था और वे केवल मुझसे ही बात करते थे।
यह मेरा धन्य भाग था। उनके साथ बिताए गए वे निजी क्षण मेरे लिए बहुत ही मूल्यवान
थे। क्योंकि उनसे मेरा अंतर परिपुष्ट हो रहा था। और एक प्रकार से वे मेरे लिए
जीवनदायी सिद्ध हो रहे थे। वे और किसी से बात नहीं करते थे। कभी मेरे उनके पास जाने पर अगर कोई
दूसरा आदमी उनके पास होता वे कुछ ऐसी हरकत करने लगते कि वह वहां से भाग जाता। जैसे
किसी चीजों को फेंकने लगते या पागल आदमी की तरह नाचने-कूदने लगते। और यह सब आधी
रात के समय। यह देखकर कोई भी डर जाता। आखिर आपकी बीबी, छह बच्चें है, नौकरी है,
और यह आदमी तो बिलकुल पागल लगता है। यह कुछ भी कर सकता है। और जब वह आदमी वहां से
चला जाता तो हम दोनों खूब हंसते। इतना मैं और किसी के साथ कभी नहीं हंसा और मैं
नहीं सोचता कि इस जीवन में दुबारा ऐसा कभी होगा।
और मेरा कोई जीवन नहीं है। चक्र रूक गया है।
हां जो थोड़ा-बहुत चल रहा है वह विगत गति के जोर से चल रहा है। उसमें नई ऊर्जा
डाली जा रही है।
मग्गा बाबा इतने सुंदर थे कि मैं उनकी तुलना
किसी और के साथ नहीं कर सकता। वे तो रोमन मूर्तिकला के उत्कृष्ट नमूने थे—उससे
भी बढ़ कर थे, क्योंकि वे इतने जीवंत थे, जीवन से भरे हुए। और मुझे इसकी इच्छा
भी नहीं है। क्योंकि एक मग्गा बाबा पर्याप्त है। उन्होंने इतना परितुष्ट कर
दिया कि और पुनरावृति की किसे फ़िकर है।
मुझे अच्छी तरह से मालूम है कि कोई भी उनसे अधिक ऊँचाई पर नहीं जा सकता।
में स्वयं उस बिंदु पर पहुंच गया हूं जहां
से और अधिक ऊंचे नहीं चढा जो सकता। आध्यात्मिक विकास में एक क्षण ऐसा आता है
जिसको पार नहीं किया जो सकता। कितने ही ऊंचे चढ़ जाओ, फिर भी तुम उसी ऊँचाई पर
रहोगे। बड़ी विचित्र बात है कि ऐसे क्षण को अनुभवातीत, ज्ञानातीत कहते है।
जिस दिन मग्गा बाबा हिमालय के लिए रवाना हुए
उस दिन पहली बार उन्होंने मुझे बुलाया। रात के समय कोई हमारे घर आया और हमारा
दरवाजा खटखटाया। मेरे पिता जी ने दरवाजा खोला। उस आदमी ने कहा कि मग्गा बाबा ने
मुझे बुलाया है। मेरे पिताजी ने आश्चर्य से कहा: ‘मग्गा बाबा, मेरे बेटे से उनको
क्या काम है? और वे तो कभी बोलते ही
नही है, तो उन्होंने इसे बुलाया कैसे?’
उस आदमी ने कहा: ‘मुझे इससे कोई मतलब नहीं
है। मुझे यह संदेश देना था सो मैंने दे दिया। अगर यह आपके बेटे के लिए है तो मैं
क्या कर सकता हूं।’
इतना कह कर वह चला गया। मेरे पिताजी ने आधी
रात को मुझे उठा कर कहा: ‘बड़ी अजीब बात है। मग्गा बाबा ने तुम्हें बुलाया है,
लेकिन वे तो बोलते नहीं है।’
मैं हंस पडा, क्योंकि वे मुझसे बोलते थे,
लेकिन मैंने यह बात पिताजी को नहीं बतार्इ्र। उन्होंने आगे कहा: ‘उन्होंने तुम्हें
इसी समय आधी रात को बुलाया है। तुम क्या करना चाहते हो? क्या तुम इस पागल आदमी के पास जाना चाहते हो।’
मैंने कह: ‘हां, मुझे तो जाना ही पड़ेगा।’
उन्होंने कहा: ‘कभी-कभी तो मुझे ऐसा लगता है
कि तुम भी पागल हो। अच्छा, जाओ, और बहार से दरवाजे पर ताला लगा देना, ताकि जब वापस
आओ तो मुझे न उठना पड़े।’
में भागा-भागा गया। यह पहली बार था जब उन्होंने
मुझे बुलाया था। जब मैं उनके पास पहुंचा तो मैंने उनसे पूछा कि क्या बात है?’
उन्होने कहा: ‘यह मेरी अंतिम रात है यहां
पर। शायद मैं सदा के लिए जा रहा हूं। तुम अकेले हो जिससे मैंने बात कि है। माफ
करना, जिस आदमी को तुम्हारे पास मैंने भेजा, उससे अवश्य बोलना पडा। लेकिन वह कुछ
नहीं जानता। उसे मालूम ही नहीं कि मैं आध्यात्मिक व्यक्ति हूं। वह एक अजनबी था।
और मैंने उसे एक रूपया दिया ताकि वह तुम्हारे घर जाकर मेरा संदेश तुम्हें दे
दे।’
उन दिनों एक सोने का रूपया या मोहर बहुत
मूल्यवान माने जाते थे। चालीस साल पहले भारत में एक सोने के रूपये में बड़े आराम
से एक महीने तक जीवन-निर्वाह किया जा सकता था। क्या तुम्हें मालूम है कि
अंग्रेजी शब्द ‘रूपी’ हिंदी के रूपया शब्द से बना है, जिसका अर्थ है सुनहरा,
कागज के नोट को रूपया नहीं कहना चाहिए, क्योंकि वह सुनहरा नहीं होता है। हां, ये
मुर्ख उस पर सुनहरा रंग लगा सकते थे। लेकिन उनहोंने ऐसा भी नहीं किया। उन दिनों का
एक रूपया आज के सात सौ रूपये के बराबर है। चालीस साल में इतना परिवर्तन हो गया है।
चीजें सात सौ गुना महंगी हो गई है।
उन्होंने
कहा: ‘मैंने उसको एक रूपया दिया और कहा कि वह तुम्हें संदेश दे दे। रूपया देख कर
वह इतना हैरान हो गया कि उसने मेरी और देखा भी नहीं। वह अजनबी था मेंने उसे पहले
कभी नहीं देखा।’
मग्गा बाबा ने कहा: ‘मैं जा रहा हूं, और
तुम्हारे सिवाय और कोई नहीं है जिससे मैं विदा लू।’
उनहोंने प्यार से मुझे गले लगाया और मेरा
माथा चूमा, विदा कहा और बस यूं ही चले गए।
मग्गा बाबा अपने जीवन में कई बार गायब हो
चुके थे, लोग उनको ले जाते और वापस भी छोड़ जाते। इसलिए इस बार जब वे गायब हुए तो
किसी ने कोई खास ध्यान नहीं दिया। कुछ महीनों के बाद ही लोगों ने खयाल किया कि
मग्गा बाबा सचमुच गायब हो गए है, कर्इ महीने से वापस नहीं आए है। उन्होंने उन्हें
उस सब जगहों पर खोजना शुरू किया जहां पर वे पहले गए थे। लेकिन किसी को उनके बारे
में कुछ नहीं पता था।
उस रात गायब होने से पहले उन्होंने मुझसे
कहा, ‘मैं शायद तुम्हें खिल कर फूल बनते न देख सकूँ, लेकिन मेरा आशीर्वाद तुम्हारे
साथ रहेगा। मेरे लिए वापस आना शायद संभव न होगा। मैं हिमालय जा रहा हुं, मेरे बारे
में किसी को कुछ मत बताना कि मैं कहां गया हूं।’
जब वे मुझे बता रहे थे कि वे हिमालय जा
रहे है, तो वे बहुत
खुश और आनंदित थे। हिमालय सदा से ऐसे लोगों का घर रहा है। जिन्होनें खोजा और पाय। मुझे नहीं मालूम था कि वे कहां गए, क्योंकि
हिमालय दुनिया की सबसे
बड़ी पर्वत
श्रंखला है। लेकिन एक
बार हिमालय में यात्रा करते समय मैं उस जगह पहुंच गया जहां उनकी कब्र थी। बड़ी अजीब बात है कि वह मोजेज और जीसस की कब्र के पास ही थी। ये दोनों व्यक्ति भी हिमालय में ही दफन हुए है। मैं वहां पर जीसस की
कब्र देखने गया था। और संयोगवश
मुझे मोज़ेज और मग्गा बाबा
की कब्रें भी मिल गई। मुझे बडा आश्चर्य हुआ, क्योंकि मैं सोच भी नहीं सकता था कि
मग्गा बाबा का मोज़ेज और जीसस से कोई
सबंध है। लेकिन वहां उनकी कब्र को देख कर तुरंत समझ
गया कि उनका चेहरा
इतना सुंदर क्यों
था और वे क्यों मोज़ेज जैसे
ज्यादा दिखाई देते थे। हिंदू जैसे नहीं। शायद वे उस खोए हुए कबीले के थे जिसे
मोज़ेज ने इजराइल जाते हुए खो दिया था। उस खोए हुए कबीले के लोग हिमालय में, कश्मीर
में बस गए। और मैं अधिकारपूर्वक
कह सकता हूं कि सही
इजराइल खोजने में यह कबीला मोजेज से
अधिक सफल रहा। मोज़ेज ने जो इजराइल खोजा वह तो बिलकुल रेगिस्तान था। बिलकुल बेकार था। इन्होंने जो कश्मीर
में खोजा वह वास्तव में
प्रभु का बग़ीचा था।
मोज़ेज वहां पर अपने खोए हुए कबीले केा खोजते
हुए पहुंच गए थे। जीसस वहां पर अपनी तथाकथित सूली लगने के बाद गए थे। मैं इसको
तथाकथित कह रहा हूं। कयोंकि वस्तुत: ऐसा हुआ नहीं, वे जीवित रहे। क्रास पर छह
घंटे लटकने के बाद जीसस मरे नहीं थे। सूली पर चढ़ाने का यहूदियों का तरीका इतना
आदिम और जंगली था कि आदमी को मरने में छत्तीस घंटे लगते थे। जीसस के एक अमीर शिष्य
ने किसी प्रकार यह व्यवस्था कर दी थी उनको शुक्रवार को सूली पर चढ़ाया जाए। यह
सब व्यवस्थित था, क्योंकि शनिवार को यहूदी कोई काम नहीं करते, न किसी काम को
लंबित रखते है। क्योंकि शनिवार उनका पवित्र दिन है। इसलिए जीसस को अस्थायी तौर
पर सूली से उतार कर एक गुफा में कुछ समय के लिए अर्थात सोमवार तक के लिए रख दिया
गया। लेकिन इस बीच गुफा में से वे चुरा लिए गए।
ईसाई यही कहानी कहते है। सच बात तो यह है कि
सूली पर से उतारे जाने के बाद रात को जब वे गुफा में थे तो उनको इजराइल से बाहर ले
जाया गया। उनका बहुत खून बह गया था फिर भी वे जीवित थे। उनको ठीक होने में कुछ दिन
लगे, लेकिन वे बिलकुल अच्छे हो गए और वे कश्मीर के एक छोटे से गांव पहल गाम में एक
सौ बारह वर्ष तक जीवित रहे।
उन्होंने पहल गाम को इसलिए चुना, क्योंकि
उन्हें मोज़ेज की कब्र यहां पर मिली। उनसे पहले मोज़ेज वहाँ गए थे अपने खोए हुए
कबीले को खोजने। कबीला तो मिल गया और कश्मीर को देखने के बाद उनको मालूम हुआ कि
कश्मीर की तुलना में इजराइल कुछ भी नहीं है। कोई दूसरी जगह नहीं है जिसकी कश्मीर
से तुलना की जा सके। वे वहीं पर बस गए और वहीं पर मरे, मेरा मतलब है मोज़ेज। और जब
जीसस अपने प्रिय शिष्य थॉमस के साथ कश्मीर गए तो उन्होंने थॉमस को भारत में
अपने मार्ग का प्रचार करने के लिए भेज दिया। वे स्वयं कश्मीर में मोज़ेज की कब्र
के पास रूक गए और आजीवन वहीं पर रहे।
इसी पहल गाम नामक छोटे से गांव में मग्गा बाबा को दफन किया गया है। जब मैं पहल
गाम में था, मुझे उस विचित्र संबंध-सूत्र का पता चला जो मोज़ेज से आरंभ होकर जीसस
और मग्गा बाबा के माध्यम से मुझ तक पहुंचा।
मेरे गांव को छोड़ने से पहले मग्गा बाबा ने
मुझे अपना कंबल देते हुए कहा: ‘मेरे पास बस यही एकमात्र चीज है और तुम अकेले हो
जिसे मैं यह देना चाहता हुं।’
मैंने कहा: ‘वह ठीक है, लेकिन मेरे पिता इस
कंबल को घर के अंदर मुझे नहीं ले जाने देंगे। वह हंसे, मैं हंसा और हम दोनों बहुत
खुश हुए। उनको भी यह अच्छी तरह से मालूम था कि मेरे पिता इतने गंदे कंबल को घर के
भीतर नहीं जाने देंगे। मुझे इस बात को अफसोस है कि मैं उस कंबल को सुरक्षित न रख
सका। था तो वह एक दम गंदा सा चीथड़ा ही, लेकिन वह बुद्ध और जीसस जैसे जाग्रत पुरूष
का था। मैं उसे अपने घर नहीं ले जा सकता था, क्योंकि मेरे पिताजी कपड़े के व्यापारी
थे और वे कपड़ों पर बहुत ध्यान देते थे।
मुझे अच्छी तरह से मालूम था कि वे मुझे उस कंबल को घर में नहीं रखने देंगे। मैं
उसे नानी के घर भी नहीं ले जा सकता था। वे भी उसे घर में नहीं लाने देतीं, क्योंकि
वे सफाई का बहुत खयाल रखती थी।
मैंने सफाई कि यह सनक उन्हीं से विरासत में पाई है। यह उनकी गलती है, मेरी
कोई जिम्मेवारी नहीं है। मैं किसी भी गंदी यह इस्तेमाल की गई चीज को बरदाश्त
नहीं कर सकता। मैं मजाक में उनसे कहता, ‘आप मुझे बिगाड़ रही है।’
लेकिन यह सच है। उन्होंने हमेशा के लिए मुझे
बिगाड़ दिया, लेकिन इसके लिए में उनका आभारी हूं। उन्होंने मुझे स्वच्छता,
शुद्धता और सौंदर्य के पक्ष् में बिगाड़ा।
मेरे लिए मग्गा बाबा बहुत महत्वपूर्ण थे,
लेकिन अगर मुझे मग्गा बाबा और मेरी नानी में चुनाव करना पड़ता तो मैं अपनी नानी को
ही चुनता। हालाकि उस समय वे संबुद्ध नहीं थी और मग्गा बाबा संबुद्ध थे। कभी-कभी
समाधि-विहीन व्यक्ति इतना प्यारा और सुंदर होता है। कि उसके लिए हम जाग्रत पुरूष
के विकल्प को भी छोड़ने के लिए तैयार हो जाते है। निश्चित ही अगर मैं दोनों को
चुन सकता तो दोनों को चुनता। अगर संसार के करोड़ों लोगों में से मुझे दो को चुनाव होता तो मैं इन का चुनाव कर
लेता। मग्गा बाबा बाहर...वे मेरी नानी घर के भीतर न जाते। वे बाहर नीम के पेड़ के
नीचे ही रहते। और निश्चित ही मेरी नानी मग्गा बाबा के पास कभी नहीं जाती। उनके
बारे में वह नाक भौ सिकोड़ कर कहती, ‘वह आदमी, अरे भूल जाओ उस आदमी के बारे में और
कभी उसके पास भी न जाना। अगर उसके नजदीक से भी गुजरना पड़े तो तुरंत नाह लेना।’
नाना को डर था कि मग्गा बाबा को जुए पड़ी हुई
है, क्योंकि उन्हें कभी-कभी किसी ने नहाते हुए नहीं देखा था। शायद वे ठीक कहती
थी। मैंने भी कभी नहाते हुए नहीं देखा था। सच तो यह है कि वे दोनों एक साथ नहीं रह
सकते थे। उन दोनों का सह-अस्तित्व असंभव
था। लेकिन हम लोग कोर्इ न कोई इंतजाम कर ही लेते। मग्गा बाबा बाहर आँगन में नीम के
पेड़ के नीचे रह सकते थे। और नानी घर में रानी बनी रह सकतीं। और मुझे बिना चुनाव
किए दोनों को प्रेम मिल सकता था। मुझे यह या वह आदि का चुनाव बिलकुल पसंद नहीं है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें