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रविवार, 31 दिसंबर 2017

कुछ काम ओर ज्ञान की बातें-13



ज्‍योतिष: अद्वैत का विज्ञान—2


और पाइथागोरस जब यह बात  कह रहा था तब वह भारत और इजिप्‍ट इन दो मुल्‍कों की यात्रा करके वापस लौटा था। और पाइथागोरस जब भारत बुद्ध और महावीर के विचारों से तीव्रता से आप्‍लवित लौटा था। पाइथागोरस ने भारत से वापस लौटकर जो बातें कहीं है उसमें उसने महावीर ओ विशेषकर जैनों के संबंध में बहुत सी बातें महत्‍वपूर्ण कहीं है। उसने जैनों का मतलब तो जैन,तो जैन दार्शनिकों पाइथागोरस ने जैनोसोफिस्‍ट कहा है। वे नग्‍न रहते हैं, यह बात भी उसने की है।
      पाइथागोरस  मानता था कि प्रत्‍येक नक्षत्र या प्रत्‍येक ग्रह या उपग्रह जब यात्रा कहता है, अंतरिक्ष में, तो उसकी यात्रा के कारण एक विशेष ध्‍वनि पैदा होती है। प्रत्‍येक नक्षत्र की गति विशेष ध्‍वनि पैदा करती है। और प्रत्‍येक नक्षत्र की अपनी व्‍यक्‍तिगत निजी ध्‍वनि है। और इन सारे नक्षत्रों की ध्‍वनियों का एक ताल-मेल है, जिसे वह विश्‍व की संगीतवद्धता, हार्मनी कहता था।

      जब कोई मनुष्‍य जन्‍म लेता है तब उस जन्‍म के क्षण में इन नक्षत्रों के बीच जो संगीत की व्‍यवस्‍था होती है। वह उस मनुष्‍य के प्राथमिक, सरल तम, संवेदनशील चित पर अंकित हो जाती है। वही उसे जीवन भर स्‍वस्‍थ और अस्‍वस्‍थ करती है। जब भी वह अपनी उस मौलिक जन्‍म के साथ पायी गई, संगीत व्‍यवस्‍था के साथ ताल मेल बना लेता है तो स्‍वस्‍थ हो जाता है। और जब उसका ताल मेल उस मूल संगीत से छूट जाता है तो वह अस्‍वस्‍थ हो जाता है।
      पैरासेल्‍सस ने इस संबंध में बड़ा महत्‍वपूर्ण काम किया है कि वह किसी मरीज को दवा नहीं देता था जब तक उसकी जन्‍म कुण्‍डली न देख ले और बड़ी हैरानी की बात है कि पैरासेल्‍सस ने जन्‍म कुण्‍डलियां देखकर ऐसे मरीजों को ठीक किया जिनको कि अन्‍य चिकित्‍सक कठिनाई में पड़ गए थे। और ठीक नहीं कर पा रहे थे। उसका कहना था, जब तक मैं न जान लूं कि यह व्‍यक्‍ति किन नक्षत्रों की स्‍थिति में पैदा हुआ है तब तक इसके अंतरर्संगीत के सूत्र को भी पकड़ना सम्‍भव नहीं है। और जब तक मैं यह न जान लूं कि इसके अंतरर्संगीत की व्‍यवस्‍था क्‍या है तो इसे कैसे हम स्‍वस्‍थ करें। क्‍योंकि स्‍वस्‍थ्‍य का क्‍या अर्थ है, इसे थोड़ा समझ लें।
      अगर साधारण: हम चिकित्‍सक से पूछे कि स्‍वास्‍थ्‍य का क्‍या अर्थ है तो वह इतना ही कहेगा कि बिमारी का न होना। पर उसकी परिभाषा निगेटिव है, नकारात्‍मक है और वह दुखद बात है कि स्‍वास्‍थ्‍य की परिभाषा हमें बीमारी से करनी पड़े; स्‍वस्‍थ्‍य तो पाजीटिव चीज है। विधायक अवस्‍था है। बीमारी निगेटिव है, नकारात्‍मक है। स्‍वास्‍थ्‍य तो स्‍वभाव है, बीमारी तो आक्रमण है।
      तो स्‍वास्‍थ्‍य की परिभाषा हमें बीमारी से करना पड़े, यह बात अजीब है। घर में रहने वाले की परिभाषा मेहमान से करनी पड़े, यह बात अजीब है। स्‍वास्‍थ्‍य तो हमारे साथ है। बीमारी कभी होती है। स्‍वास्‍थ्‍य तो हम ले कर पैदा होते है। बीमारी उस पर आती हे। पर हम स्‍वास्‍थ्‍य की परिभाषा अगर चिकित्‍सकों से पूछे तो वे यही कह पाते है कि बीमारी नहीं है तो स्‍वास्‍थ्‍य है। पैरासेल्‍सस कहता था, यह व्‍याख्‍या गलत हे। स्‍वास्‍थ्‍य की पाजीटिव डेफिनेशन, विधायक परिभाषा होनी चाहिए। पर उस पाजीटिव डेफिनेशन को उस विधायक व्‍याख्‍या को कहां से पकड़ेगे?
      तब पैरासेल्सस कहता था, जब तक हम तुम्‍हारे अन्‍तर्निहित संगीत को न जान लें—क्‍योंकि वहीं तुम्‍हारा स्‍वास्‍थ्‍य है, तब तक हम ज्‍यादा से ज्‍यादा तुम्‍हारी बीमारियों से तुम्‍हारा छुटकारा करवा सकते हे। लेकिन हम एक बीमारी से तुम्‍हें छुड़ाएंगे और दूसरी बीमारी तो तत्‍काल पकड़ लेगी। क्‍योंकि तुम्‍हारे भीतर संगीत के संबंध में कुछ भी किया नहीं जा सका। असली बात तो यही थी कि तुम्‍हारा भीतरी संगीत स्‍थापित हो जाए।
      इस संबंध में, पैरासेल्‍सस को हुए तो कोई पाँच सौ वर्ष होते है। उसकी बात भी खो गई थी। लेकिन अब पिछले बीस वर्षों में, उन्‍नीस सौ पचास के बाद दुनिया में ज्‍योतिष का अब पुन आर्विर्भाव हुआ है। और आपको जानकर हैरानी होगी कि कुछ नए विज्ञान पैदा हुए है। जिनके संबंध में आपसे कह दूँ तो फिर पुराने विज्ञान को  समझना आसान हो जाएगा।
      उन्‍नीस सौ पचास में एक नई साइंस का जन्‍म हुआ। उस साइंस का नाम है कास्‍मिक केमिस्‍ट्री, ब्रह्म-रसायन। उसको जन्‍म देने वाला आदमी है, जियारजी जिआ डी। यह आदमी इस सदी के कीमती से कीमती, थोड़े से आदमियों में एक है। इस आदमी ने वैज्ञानिक आधारों पर प्रयोगशालाओं में अनन्‍त प्रयोगों को करके यह सिद्ध किया है कि जगत पूरा एक आर्गैनिक यूनिटी है।
      पूरा जगत एक शरीर है। और अगर मेरी उँगली बीमार पड़ जाती है। तो मेरा पूरा शरीर प्रभावित होता है। शरीर का अर्थ होता है टुकड़े अलग-अलग नहीं है । संयुक्‍त है, जीवन्‍त रूप से इकट्ठे है। अगर मेरी आँख में तकलीफ होती हे। तो मेरे पैर का अंगूठा भी उसे अनुभव करता है। और अगर मेरे पैर को चोट लगती है। तो मेरे ह्रदय को भी खबर मिलती हे। और अगर मेरा मस्‍तिष्‍क रूग्‍ण हो जाता है तो मेरा शरीर पूरा का पूरा बेचैन हो जाता है। और अगर मेरा पूरा शरीर नष्‍ट कर दिया जाए तो मेरे मस्‍तिष्‍क को खड़े होने के लिए जगह मिलनी मुश्‍किल हो जाएगी। मेरा शरीर एक आर्गैनिक यूनिटी है—एक एकता है जीवन्‍त। उसमें कोई भी एक चीज को छुओ जो सब तरंगित होता है, सब प्रभावित हो जाता है।
      कास्‍मिक केमिस्‍ट्री कहती हे। कि पूरा ब्रह्माण्‍ड एक शरीर है। उसमें कोई भी चीज अलग-अलग नहीं है, सब संयुक्‍त है। इसलिए कोई तारा कितनी ही दूर क्‍यों न हो। जब वह ज्‍यादा उत्‍तप्‍त होता है तब हमारे खून की धाराएं बदल जाती है—हर ग्‍यारह वर्षों में....।
      पिछली बार जब सूरज पर बहुत ज्‍यादा गतिविधि चल रही थी और अग्‍नि के विस्‍फोट चल रहे थे तो एक जापानी चिकित्‍सक तोमा तो बहुत हैरान हुआ। वह चिकित्‍सक स्‍त्रियों के खून पर निरन्‍तर काम कर रहा था बीस वर्षों से। स्‍त्रियों के खून की एक विशेषता है जो पुरूषों के खून की नहीं है। उनके मासिक धर्म के समय उनका खून पतला हो जाता है। और पुरूष का खून पूरे समय एक-सा रहता है। स्‍त्रियों का खून मासिक धर्म के समय खून में यह एक बुनियादी फर्क तोमा तो अनुभव कर रहा था।
      लेकिन जब सूरज पर बहुत जोर से तूफान चल रहे थे आणविक शक्‍तियों के—जो कि हर ग्‍यारह वर्ष में चलते है। तब वह चकित हुआ कि पुरूषों का खून भी पतला हो जात है। जब सूरज पर आणविक तूफान चलता है। तब पुरूष का खून भी पतला हो जाता है। वह बड़ी नयी घटना थी। यह उसके पहले कभी रिकार्ड नहीं की गयी थी कि पुरूष के खून पर सूरज पर चलने वाले तूफान का कोई प्रभाव पड़ेगा। और अगर खून पर प्रभाव पड़ सकता है तो फिरा किसी भी चीज पर प्रभाव पड़ सकता है।
      एक दूसरा अमरीकन विचारक है फ्रैंक ब्राउन। वह अन्‍तरिक्ष यात्रियों के लिए सुविधाएं जुटाने का काम करता रहा है। उसकी आधी जिन्‍दगी अन्‍तरिक्ष में जो मनुष्‍य यात्रा करने जाएगा उसको तकलीफ न हो उसके लिए काम करने ही रही है। सबसे बड़ी विचारणीय बात यही थी कि पृथ्‍वी को छोड़ते ही अन्‍तरिक्ष में न मालूम कितने प्रभाव होंगे। न मालुम कितनी धाराएं होंगी। रेडिएशन की किरणों की—वह आदमी पर क्‍या प्रभाव करेंगी।
      लेकिन दो हजार साल से ऐसा समझा जाता है अरस्तू के बाद, पश्‍चिम में कि अन्‍तरिक्ष शून्‍य है, वहां कुछ है हीन हीं। दो सौ मील के बाद पृथ्‍वी पर हवाएँ समाप्‍त हो जाती है। और फिर अन्‍तरिक्ष शुन्‍य है। वहां लेकिन अन्तरिक्ष यात्रियों की खोज ने सिद्ध किया कि वह बात गलत है। अन्‍तरिक्ष शुन्‍य नहीं है, बहुत भरा हुआ है। और न तो शून्‍य है, न मृत है—बहुत जीवन्‍त है। सच तो यह है कि पृथ्‍वी की दो सौ मील की हवाओं की पर्तें सारे प्रभावों को हम तक आने से रोकती है। अन्तरिक्ष में तो अद्भुत परवाहों की धाराएं बहाती रहती है—उसको आदमी सह पायेगा या नहीं।
      आप यह जान कर हैरान होंगे और हंसेंगे भी कि आदमी को भेजने के पहले ब्राउन ने आलू भेजे अन्‍तरिक्ष में। क्‍योंकि ब्राउन का कहना है कि आलू और आदमी में बहुत भीतरी फर्क नहीं। अगर आलू सड़ जाएगा तो आदमी भी नहीं बच सकेगा और अगर आलू बच सकता है तो ही आदमी बच सकेगा। आलू बहुत मजबूत प्राणी है। और आदमी तो बहुत संवेदनशील है। अगर आलू लोट आता है। जीवंत मरता नहीं है और उसे जमीन में बोने पर अंकुर निकल आता है तो फिर आदमी को भेजा जा सकता है। तब डर है कि आदमी सह पायेगा या नहीं।
      इसमें एक और हैरानी की बात ब्राउन ने सिद्ध की कि आलू जमीन के भीतर पडा हुआ, या कोई भी बीज जमीन के भीतर पडा हुआ बढ़ता है.....सूरज के ही संबंध में, सूरज ही उसे जगाता, उठाता है। उसके अंकुर को पुकारता और ऊपर उठाता है।
      ब्राउन एक दूसरे शास्‍त्र का भी अन्‍वेषक है। उस शास्‍त्र को अभी ठीक-ठीक नाम भी मिलना शुरू नहीं हुआ है। लेकिन अभी उसे कहते है—प्‍लेनटरी हेरिडिटी, उपग्रही वंशानुक्रम। अंग्रेजी में शब्‍द है, होरोस्‍कोप। वह यूनानी होरोस्‍कोपस का रूप है। होरोस्‍कोपस, युनानी शब्‍द का अर्थ होता है, ‘’मैं देखता हूं जन्‍मते हुए ग्रह को।‘’
      असल में जब एक बच्‍चा पैदा होता है तब उसी समय पृथ्‍वी के चारों ओर, क्षितिज पर अनेक नक्षत्र जन्‍म लेते हैं, उठते है। जैसे सूरज उगता है सुबह....। जैसे सूरज उगता है सुबह और सांझ डूबता है, ऐसे ही चौबीस घण्‍टे अन्‍तरिक्ष में नक्षत्र उगते है और डूबते है।
      जब एक बच्‍चा पैदा हो रहा है....समझें सुबह छह बजे बच्‍चा पैदा हो रहा है। वहीं वक्‍त सूरज भी पैदा हो रहा है। उसी वक्‍त और कुछ नक्षत्र पैदा हो रहे हे। कुछ नक्षत्र ऊपर है, कुछ नक्षत्र उतार पर चले गए हे। कुछ नक्षत्र चढ़ाओं पर है।
      जब एक बच्‍चा पैदा हो रहा है तब अन्‍तरिक्ष की—अन्‍तरिक्ष में नक्षत्रों की एक स्‍थिती है। अब तक ऐसा समझा जाता था और अभी भी अधिक लोग जो बहुत गहराई से परिचित नहीं है वे ऐसा ही सोचते है कि चाँद-तारों से आदमी के जन्‍म का क्‍या लेना देना। चाँद तारे कहीं भी हों इससे एक गांव में बच्‍चा पैदा हो रहा है, इससे क्‍या फर्क पड़ेगा।
      फिर वे यह भी कहते है कि एक ही बच्‍चा पैदा नहीं होता, एक तिथि में, एक नक्षत्र की स्‍थिति में लाखों बच्‍चे पैदा होते हे। उनमें से एक प्रैजिडेंट बन जाता हे। किसी मुल्‍क का, बाकी तो नहीं बन पाते। एक उनमें से सौ वर्ष का होकर मरता है, दूसरा दो दिन का ही मर जाता हे। एक उसमें से बहुत बुद्धिमान होता है और एक निर्बुद्धि ही रह जाता हे।
ओशो
 ‘’ज्‍योतिष: अद्वैत का विज्ञान’’
वुडलैण्‍ड, बम्‍बई, दिनांक 9 जुलाई 1971

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