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बुधवार, 14 मार्च 2018

स्वर्णिम बचपन-(ओशो आत्मकथा)-सत्र-49

नीम का पेड़ और भूत

      च्‍छा, मैं उस आदमी को याद करने की कोशिश कर रहा था। मुझे उसका चेहरा तो दिखाई दे रहा है। किंतु शायद मैंने उसका नाम जानने की कभी कोशिश नहीं की। इसलिए मुझे वह याद नहीं है। मैं तुम्‍हें वह सारी कहानी सुनाता हूं।
      जब मेरी नानी ने देखा कि मुझे स्‍कूल भेजने से कोई फायदा नहीं । मैं पढ़ता-वढ़ाता नहीं हूं, केवल शैतानी ही करता हूं तो उन्‍होने मेरे माता-पिता को यह समझाने की कोशिश की कि वह लड़का दूसरे लड़कों के लिए एक मुसीबत बन गया है। लेकिन कोई उनकी बात सुनने को तैयार ही न था। यह उस समय की बात है जब मैंने हाईस्‍कूल में प्रवेश किया था। उन्‍होंने कहा: यह रोज कोई न कोई शरारत करता है। यह स्‍कूल भी कभी-कभी जाता है, रोज नहीं। इस प्रकार यह क्‍या सीखेगा। शिक्षा प्राप्‍त करने के लिए इसके पास समय ही नहीं है। क्‍योंकि यह सदा अपने लिए और दूसरों के लिए कोई न कोई मुसीबत खड़ी कर देता है।
      नानी ने भी मुझे बुनियादी शिक्षा देने की कोशिश की। परंतु अंत में वे सदा इस निर्णय पर पहुंची कि मेरे लिए एक प्राइवेट मास्टर रखा जाए जो मुझे अच्‍छी तरह से पढ़ा सके। किंतु मेरे परिवार का कोई भी आदमी उसके इस प्रस्‍ताव से सहमत नहीं था। आज भी उस शहर में शायद ही कभी कोई प्राइवेट मास्‍टर रखता हो। सारा परिवार यही कह रहा था कि जब शिक्षा के लिए स्‍कूल है तो प्राइवेट मास्‍टर की क्‍या जरूरत है।
      नानी ने कहा: यह लड़का दूसरों जैसा नहीं है। ऐसा इसलिए नहीं है कि मैं उससे प्रेम करती हूं, बल्‍कि इसलिए कि यह सही मायने में उपद्रवी है। मैं इसके साथ वर्षो से रह रही हूं। और मुझे मालूम है कि यह शैतानी किए बिना रह नहीं सकता। सज़ा पाने से भी नहीं डरता। किंतु मेरे माता-पिता, और मेरे पिता के भाई-बहन और परिवार के अन्‍य लोग नानी के इस प्रस्‍ताव से सहमत न हुए। और उन सबको बड़ा अचरज हुआ जब मैं इस बात को मान गया।
      मैंने कहा: नानी बिलकुल ठीक है। ऐसे घटिया स्‍कूल में मैं कुछ नहीं सीख सकूंगा। उन अध्‍यापकों को देखते ही मेरी इच्‍छा होती है कि मैं इनको ऐसा सबक सिखा दूँ कि ये जिंदगी भर याद रखें। और लड़के....इतने सारे लड़कों का चुपचाप बैठना कितना अस्‍वाभाविक है। सो मैं तुरंत कुछ ऐसी-वैसी हरकत करता हूं कि जिससे उनका वास्‍तविक स्‍वभाव प्रकट हो जाता है। और वे सभ्‍यता तथा संस्‍कृति के सब नियम भूल जाते है। नानी ठीक कहती है: अगर आप लोग चाहते है कि मैं भाषा,गणित, भूगोल और इतिहास की थोड़ी-बहुत जानकारी प्राप्‍त कर लू तब आपको इनकी बात माननी पड़ेगी।
      अगर मैंने कोई पटाखा फोड़ दिया तो उससे जैसे स्‍तब्‍ध रहते उससे भी कहीं ज्‍यादा वे स्‍तब्‍ध रह गए...क्‍योंकि मैंने कोई पटाखा फोड़ दिया होता तो वह तो अपेक्षाकृत होता,किंतु मैंने जो कहा वह अप्रत्‍याशित था। मेरे परिवार के तथा पडोस के लोग तो सोचते ही थे कि मैं अवश्‍य कुछ उलटा-सीधा काम करके उनको परेशान करूंगा। यहां तक कि उन्‍होंने मुझसे पूछना भी शुरू कर दिया कि अब तुम क्‍या गुल खिलाने वाले हो।
      मैंने कहा: क्‍या मुझे एक छुटटी नहीं मिल सकती। क्‍या गुल खिलाने वाले हो। क्‍या तुम इस के लिए मुझे पैसे दे रहे हो। मैं तो दुनिया की हर चीज प्रस्‍तुत कर सकता हूं। सारे शहर को मेरे कारनामों की कीमत चुकानी चाहिए।
      सिर्फ मेरी नानी को ही मेरी चिंता थी। और मैंने अपने परिवार के लोगों से कहा: मुझे बुनियादी शिक्षा तो मिलनी ही चाहिए। नानी की बात मानो। और आप मानो या न मानो मैं तो अब प्राइवेट मास्‍टर से ही पढ़ूंगा। उन्‍हें मेरी सहमति की आवश्‍यकता है और मैं उनसे पूरी तरह से सहमत हूं।
      नानी ने कहा: सुना तुम लोगों ने कि यह क्‍या कह रहा है। तुम इससे ऐसी आशा नहीं थी किंतु इसका व्‍यवहार सदा अप्रत्याशित होता है—यही इसका गुण है। सो चौंकों मत और इसे अपना अपमान मत मानो। अगर तुम ऐसा समझोगे तो यह इसी तरह की बात बार-बार दोहराए गा। अब तो तुम लोग मेरी बात मानो और इसके लिए एक अच्‍छा से मास्‍टर खोजों। बेचारे मेरे पिताजी—बेचारे इसलिए कि सब लोग उन पर हंस रहे थे। उन्‍होंने कहा: मैं आपसे सहमत तो था ही लेकिन मुझे परिवार के बाकी लोगों का डर था—आपकी बेटी अर्थात अपनी पत्‍नी का भी। मुझे डर था कि वे सब मुझ पर नाराज होगें। आप बिलकुल ठीक कह रही है। इसे कुछ बुनियादी शिक्षा की जरूरत है। और असली समस्‍या यह नहीं है कि इसकी आवश्‍यकता है या नहीं। वास्‍तविक समस्‍या तो यह है कि इसे पढ़ाने के लिए कोई मास्‍टर तैयार होगा या नही? हम पैसा खर्च करने को तैयार है, आप एक अच्‍छा सा मास्‍टर खोज लें।
      नानी ने पहले से ही किसी मास्‍टर के बारे में सोच रखा था। उन्‍होंने मुझसे पूछा भी था कि उसके बारे में मेरा क्‍या विचार है। मैंने कहा: आदमी तो ठीक ही लगता है किंतु मुझे वह जोरू का गुलाम लगता है।      
      नानी ने कहा: उससे तुम्‍हें कोई मतलब नहीं है। एक बच्‍चे को क्‍यों उसकी चिंता करनी चाहिए। वह एक अच्‍छा अध्‍यापक है। इस प्रदेश का वह सबसे अच्‍छा अध्‍यापक माना जाता है। और इसके लिए उसे गवर्नर का प्रमाणपत्र भी दिया गया है। तुम उस पर निर्भर रह सकते हो।
      मैंने कहा: वह अपनी पत्‍नी पर निर्भर है और उसकी पत्‍नी अपने नौकर पर निर्भर है—उसका नौकर बिलकुल बेवकूफ है—और मुझे उस पर निर्भर होना है? अच्‍छी श्रंखला है, आदमी अच्‍छा है लेकिन मुझे उस पर निर्भर होने के लिए मत कहो। आप तो केवल इतना ही कहिए कि मैं पढ़ने के लिए उसके पास बैठूं। निर्भर क्‍यों होऊं। वह मेरा मालिक नहीं है। वास्‍तव में मैं उसका मालिक हूं।
      अगर तुम उससे ऐसी बात कहोगे तो वह तुरंत चला जाएगा।
      मैंने कहा: आप उसके बारे में कुछ नहीं जानती, मैं जानता हूं। अगर मैं उसको सर पर सच में मार दूँ तो भी वह कहीं नहीं जाएगा। क्‍योंकि मुझे मालूम है कि उसके कानों को कौन पकड़े हुए है।
      भारत में गधों को कान से पकड़ते है। उनके कान लंबे होते है इसलिए उन्‍हें कान से पकडना आसान होता है। वह गधा है। वह शिक्षित अवश्‍य है किंतु मैं उसकी पत्‍नी को जानता हूं,वह जबरदस्‍त औरत है। उसके जैसे कई गधे उसके पास है। अगर वह कुछ गड़बड़ करेगा तो मैं उसको देख लुंगा। चिंता की कोई बात नहीं है। और याद रखिए हर महीने का आप जो वेतन देंगी वह मेरे द्वारा उसकी पत्‍नी को दिया जाएगा।
      नानी ने कहा: मैं तुम्‍हें जानती हूं। अब मैं तुम्‍हारे तर्क को समझ गई हूं।
      मैंने कहा: अच्‍छा, तो ठीक है।
      मैंने उस आदमी को बुलाया। वह पूरी तरह से जोरू का गुलाम था। मैं उसको नानी के पास ले गया। पहले तो उसने बच निकलने की कोशिश की। फिर मैंने उससे कहा: अगर तुम बचने की कोशिश करोगे तो मैं तुम्‍हारी पत्‍नी को बता दूँगा।
      उसने कहा: क्‍या? नहीं, मेरी पत्‍नी को क्‍यों बताओ गे।
      मैंने कहा: तो फिर चुप रहो और भागने से पहले अच्‍छी तरह से सोच लो। मेरी नानी तुम्‍हें जो वेतन देंगी वह रकम लिफाफे में बंद करके मैं तुम्‍हारी पत्‍नी को दे दूँगा। यहीं इंतजाम किया गया हे। मुझे नहीं। इसलिए भागने से पहले दो बार सोच लो।
      वह अधिक वेतन की मांग कर रहा था। लेकिन जैसे ही मैंने उसकी पत्‍नी का नाम लिया वह तुरंत राज़ी हो गया।
      मैंने नानी को आँख से इशारा किया और कहा कि देखा लो, कैसा अध्यापक आपने चूना है। अब बताओ वह मुझे पढ़ाएगा या मुझे उसे पढ़ना होगा। कौन किसको पढ़ाएगा उसका वेतन तो निशिचत हो गया है किंतु दूसरा प्रश्‍न अब मेरे लिए बहुत महत्‍वपूर्ण है।   
      उस आदमी ने पूछा: तुम्‍हारा क्‍या मतलब है कि कौन किसको पढ़ाएगा? क्‍या तूम मुझे पढ़ाएगा।
      मैंने कहा: क्‍यों नहीं। मैं तुम्‍हें वेतन दे रहा हूं। इसलिए मुझे तुम्‍हें पढ़ाना चाहिए ओर तुम्‍हे सीखना चाहिए। पैसा सब कुछ कर सकता है।
      मेरी नानी ने उस आदमी को कहा: डरना मत। यह लड़का उतना बुरा नही है। अगर आप उसे उतैजित नहीं करोगे,किसी बात के लिए उकसाओगे नहीं तो वह आपको कभी परेशान नहीं करेगा। एक बार यदि कोई उससे छेड़खानी कर बैठे,तो मैं उसे रोक नहीं सकती। क्‍योंकि उसको तो कोई वेतन नहीं मिलता। मैं उसे बडी मुश्‍किल से कुछ पैसे लेने के लिए राज़ी करती हूं। ताकि वह मिठाई, खिलौने और कपड़े खरीद सके। हमेशा इस बात का खयाल रखना कि कभी उसे कोई चुनौती मत देना, छेड़खानी मत करना, नहीं तो तुम मुसीबत में पड़ जाओगे। किंतु उस बेवकूफ ने पहले ही दिन मुझे उकसा दिया।
      वह सुबह-सुबह ही आ गया। वह एक अवकाश प्राप्‍त हेड मास्टर था किंतु मुझे नहीं लगता कि कभी भी उसके पास दिमाग था। इस दुनिया में लोग दो वर्गों में विभक्‍त है—एक है हाथ वाले, दूसरे है सिर वाले। मजदूर है हाथ वाले अर्थात हाथ से काम करने वाले सिर्फ हाथ, जैसे कि हाथों के पीछे कोई है ही नहीं। और बुद्धिजीवी लोग, जो अपने आप को बड़ा दिमाग वाला समझते है। ‘’सिर वाल’’ की तरह जाने जाते है। चाहे उनके पास सिर हो या न हो। मैंने बहुत से विभागाध्यक्ष को देखा है जो अध्‍यक्ष तो बन गए है, किंतु बुद्धिहीन है सिर विहीन है।
      जब यह आदमी मुझे पढ़ाने के लिए आया तो इसके वही किया जो मेरी नानी ने नहीं करने को कहा था। अब मेरी समझ में आता है कि उसने एकसा क्‍यों किया? उस समय तो मैं उसके मनोविज्ञान को नहीं समझ सका,परंतु अब मुझे मालूम हो गया है कि उसने ऐसा व्‍यवहार क्‍यों किया था। अपने को अच्‍छी तरह से जान लेने के बाद मेरी समझ में आ गया है कि लोग एक यंत्र जैसे क्‍यों बन गए है। उनका व्‍यवहार यांत्रिक क्‍यो हो गया है। वे तो रोबोट बन गए है। कभी नट्स तो कभी बोल्‍ट—दोनों हो गए है।      
      अब वह बड़ा कठिन होगा और बड़ी लंबी बातचीत में चले जाएंगे ओर मैं शायद इस बेचारे आदमी को भूल जाऊँगा जो कि मेरे सामने हाथ जोड़ कर खड़ा है, इसलिए किसी और रोज हम नट्स-बोल्‍टस की बात करेंगे। अब इस आदमी की बात शुरू करता हूं.....
      वह मेरी नानी के घर मेरे कमरे में आया था। वैसे तो सारा घर ही मेरा था केवल नानी के कमरे को छोड़ कर। और उस घर में बहुत से कमरे थे। वह बहुत बड़ा घर तो नहीं था। किंतु उसमें छह कमरे थे। नानी को तो एक कमरे की जरूरत थी। बाकी पाँच कमरे मेरे थे। क्‍योंकि वहां पर दूसरा कोई नहीं था। मैं इन कमरों में अलग-अलग काम करता था। एक कमरे में मैं अनेक तरह के काम सीखता था। जैसे कि साँपों को कैसे पकड़ना,उनको अपने संगीत के साथ नाचना सिखाता। हालांकि संगीत से उनका कोई सबंध नहीं है। उस कमरे में मैंने जादू के खेल भी सीखें। मेरे उस कमरे में तो मेरी नानी को भी आने की इजाजत नहीं थी। क्‍योंकि वह सीखने की पवित्र  जगह थी। किंतु नानी को मालूम था कि वहां पर पवित्र जैसा कोई काम नहीं होता। लेकिन कोई भी वहां नहीं आ सकता था। मेंने उस कमरे के बाहर ही एक बोर्ड पर लिख रखा था। बिना पूर्व अनुमति के प्रवेश नहीं।
      मैंने शंभु बाबू के आफिस के बहार यह नोटिस लगा हुआ देख था। मैंने उनसे कहा: मैं इसे जे ला रहा हूं। उन्‍होंने कहा: क्‍यों?
      मैंने कहा: इस नोटिस पर तो यह लिखा हुआ नहीं है कि इसके लिए पैसे देने पड़ेंगे। यह तो मुफ्त है। शंभु बाबू, आपको तो यह मालूम ही नहीं होगा।
      यह सुन कर शंभु बाबू जो से हंसे और उन्‍होंने कहा: वर्षों से यह नोटिस मेरी आंखों के सामने लगा है और आज तक किसी ने मुझे यह नहीं बताया कि इस बोर्ड पर कीमत नहीं लिखी गई। कोई भी इसको ले जा सकता था। यह तो केवल एक कील पर टँगा हुआ है। कुछ करने की जरूरत नहीं है। तुम जब चाहो इसे ले जाओ।
      मैंने कहा: आप मेरे मित्र है पर इस प्रकार कि बातों को बीच में मत लाओ। और आज तक मैंने अपनी मित्रता का फायदा नहीं उठाया। किंतु फिर उस नोटिस को मैंने अपने कमरे के बाहर लगा दिया। शायद अभी भी वह वहां पर लगा हुआ हो।
      वह आदमी, जिसका नाम अभी तक मुझे याद नहीं आया....मैंने अपने दिमाग पर बहुत जोर दिया किंतु फिर भी नाम याद नहीं आ रहा। अब तो उस नाम को भूल जाना ही अच्‍छा है। नाम से तो कोई फर्क नहीं पड़ता। हां, भीतर से वह के साथ यह जानना जरूरी है। लगता है कि वह रबर का बना हुआ था। मैंने उसके जैसा दूसरा आदमी ही नहीं देखा।
      गर्मी के दिन थे और वह सूट-बूट पहन कर और टाई लगा कर आया। शुरू से ही उसने अपनी मूर्खता का परिचय दे दिया। गर्मी के मौसम में मध्‍य भारत में सूर्योदय से पहले ही पसीना आने लगता है। और वह आया टाई लगा कर। मोजे और लंबी पेंट पहन कर। और तुम्‍हें तो मालूम ही है कि मुझे लंबी पेंट से बहुत नफरत है। शायद इस आदमी के कारण ही मुझे पेंट सदा से नापसंद है। इस वक्‍त भी वह मेरे सामने खड़ा है। मैं बहुत बारीकी से उसका वर्णन कर सकता हूं।
      जब वह कमरे के भीतर आया तो वह खांसा, अपनी टाई को ठीक किया और सीधे खड़े होकर उसने कहा: सुनो, लड़के, मैंने तुम्‍हारे बारे में बहुत कुछ सुना है। इसीलिए शुरू से ही तुम्‍हें यह बात बता देना चाहता हूं कि मैं कायर नहीं हूं। डरपोक नहीं हूं। इसके बाद उसने इधर-उधर देखा कि शायद कोई सुन रहा हो और वह यह बात उसकी पत्‍नी को बात दे। और उसको यह नहीं मालूम था कि उसकी पत्‍नी से मेरी अच्‍छी मित्रता थी। वह लगातार इस और से उस और देख रहा था। मुझे मालूम है कि कायर सदा ऐसा व्‍यवहार करते है। कुछ लोग इसके अपवाद भी हो सकते है। किंतु सामान्‍यत: ऐसा ही व्‍यवहार करते है। जब एक बच्‍चा अपने सामने ही बैठा हुआ है तो इस आदमी को इधर-उधर देखने कि क्‍या जरूरत थी। सिर्फ मुझे छोड़ कर सब आरे देख रहा था। दरवाज़ों को, खिड़कियों को, दीवानों को। सिर्फ मुझे छोड़ कर यह देख कर मुझे बड़ा मजा आ रहा था। और उस पर दया भी आ रही थी।
      मैंने कहा: आप भी सुनिए। क्‍या? और डरी हुई निगाह से चारों और देखते हुए कहा: भूत,यह भूतों की बात कहां से आ गई। मैं तो अपना परिचय तुम्‍हें दे रहा हूं। और तुम से परिचय हो रहा है, और तुमने भूतों की बात शुरू कर दी।
      मैंने कहा: नहीं, अभी तो मैं उनका परिचय नहीं करवा रहा, किंतु आज रात मैं आपको भूत के साथ ही देखूँगा।      
      इतना सुन कर उसके पसीने छूट गये। तब मैंने कहा: खैर, समय खराब मत कीजिए आप पढ़ाना शुरू कीजिए। मुझे और भी बहुत से काम है।
      वह मुझ पर भरोसा ही न कर सका। किंतु उसे मुझसे कोई मतलब ही न था। न हीं मेरे किसी काम से उसने कहा: हां-हां, अभी पढ़ाना शुरू करता हूं, किंतु तुम भूत के बारे मे क्‍या जानते हो।
      मैंने कहा: अभी तो उनके बारे में भूल जाइए। रात को मैं उनसे परिचित करवा दूँगा।
उसने जब देखा कि मैं बड़ी गंभीरता से बात कर रहा हूं, तो वह कांपने लगा। वह कुछ बोल रहा था वह मैं नहीं सुन सका। मुझे केवल उसकी पतलून कांपती हुई दिखाई दे रहीं थी। एक घंटा जो बकवास उसने मुझे पढा़या, उसे पढ़ने के बाद मैंने कहा: सर, आपकी पेंट में कुछ गड़बड़ है।
      उसने कहा: क्‍या गड़बड़ है? फिर उसने नीचे देखा, और देखा कि पेंट कंप रही हे। और अब तो और जोर से कंप रही थी। मैंने कहा आपकी पतलून के भीतर कुछ है। मैं तो नहीं देख सकता किंतु आपको तो पता होगा। पर आप कांप क्‍यों रहे है। और आपकी पेंट नहीं आप भी कांप रहे है।
      वह पढ़ाई बीच में ही छोड़कर चला गया। बोला कि मेरा ऐपौइंटमैंट है। यह पाठ मैं कल पूरा करूंगा।
      मैंने कहा: कल कृपया हॉफ पेंट पहल कर आना, क्‍योंकि तब हम पक्‍का जान पाएंगे कि पेंट कंप रही है या आप। सच की सेवा में होगा—क्‍योंकि अभी तो यह एक रहस्‍य है। में भी सोच रहा हूं कि यह किस तरह की पेंट है।
      उसका यह पेंट बहुत सुंदर था। कम से कम ऐसा लग रहा था। कि वह उसका ही था। पर मुझे पता नहीं था कि वह उसका था कि नहीं। क्‍योंकि उस रात ने सब कुछ खत्‍म कर दिया। वह दुबारा कभी नहीं आया और इस प्रकार समाप्‍त हुआ मेरे प्राइवेट मास्‍टर का किस्‍सा।
      मैंने अपनी नानी से कहा था कि आप क्‍या सोचती है कि कोई भी कितनी कीमत  लेकिर मुझे सहन कर लेगा।
      चीजों को गड़बड़ मत करो किसी तरह से मेंने तुम्‍हारे परिवार को समझाया था। और तुम भी मान गए थे, सच तो यह है कि तुम्‍हारे कारण ही मुझे सफलता मिली थी।
      नहीं, मैने कहा: मैं कुछ नहीं करूंगा पर कुछ होता है तो मैं क्‍या करूं। और यह तो आपको बताना ही है क्‍योंकि आज की रात से यह तय होगा कि आप उसे पैसे देगी या नहीं। उन्‍होंने कहा: क्‍या, वह मरने वाला है। और इतनी जल्‍दी, आज सुबह ही तो शुरू आत हुई है और सिर्फ एक घंटे ही तो उसने काम किया है।
      मैंने कहा: उसने ही मुझे उकसाया।
      उन्‍होने कहा: मैंने उसको पहले  ही चेताया था कि तुम्‍हें न उकसाए।
      मेरी नानी के पुराने मकान के आँगन में एक बहुत बड़ा नीम को पेड़ था। वह बहुत ही बड़ा ओर पुराना वृक्ष था। इतना बड़ा कि पूरे मकान के ऊपर छाया हुआ था। गर्मी के दिनों में जब नीम फूलता था तो उसकी सुगंध चारों और फैल जाती थी।
      मुझे पता नहीं था कि नीम जैसा कोई और वृक्ष कहीं और होता है या नहीं। क्‍योंकि इसे बहुत गर्म मौसम चाहिए। इसके फूलों में एक तीखी—यही शब्‍द में सोच सकता हूं—तीखी सुगंध होती है। मुझे इसे सुगंध नहीं कहना चाहिए क्‍योंकि यह बहुत कड़वी होती है। जैसे ही तुम इसे सूँघते हो यह एक कड़वा स्‍वाद मुंह में छोड़ जाती है। ऐसा होगा ही क्योंकि नीम की चाय शायद दुनिया में सबसे कड़वी चाए होती है। पर अगर तुम इसे पसंद करने लगो तो यह वैसे ही है जैसे कॉफी। थोड़ा अभ्‍यास करना होता है अन्यथा ऐसा नहीं है कि तुम्‍हें तुरंत पसंद आ जाए।
      हालांकि तुरंत तैयार (इस्टंट) कॉफी उपलब्‍ध होती है बाजार में, फिर भी तुम्‍हें स्‍वाद के लिए अभ्‍यास करना होता है। शराब के संबंध में भी यही सच है, और हजार ऐसी चीजें है। धीरे-धारे तुम्‍हें स्‍वाद का मजा लेना सीखना पड़ता है। अगर तुम किसी नाम के बाग़ में रह रहे हो अपनी पहली श्‍वास से ही उसकी खुशबू को जानते हो तो वह तुम्‍हारे लिए कड़वी न होगी। और अगर कड़वी भी है तो मीठी भी होगी।   
      भारत में नीम के पेड़ अधिक से अधिक लगाने को धार्मिक कार्य मानते है। बड़े आश्‍चर्य की बात है। किंतु अगर तुम नीम के वृक्ष को जानते हो तो तुम इस पर हंसोगे नहीं नीम वायु को शुद्ध कर देता है। भारत गरीब देश है और शुद्ध करने के उपकरण नहीं लगा सकता किंतु नीम प्राकृतिक है और आसानी से बढ़ता है।
      नीम का यह पेड़ मेरी नानी के घर के पीछे था। मैं नानी के घर को ही अपना घर कहता था। दूसरा घर बाकी सबके लिए था। मैं उसका हिस्‍सा नहीं था। कभी-कभी मैं वहां अपने माता-पिता को मिलने जाता था। पर जितनी जल्‍दी हो सके वहां से चला जाता था। और उन्‍हें पता था कि मैं उनके घर नहीं आना चाहता। तो मेरा घर उस नीम के पेड़ के साथ बहुत ही सुदंर जगह पर था। मुझे नहीं पता कि दुनिया कितने बनाई और न ही यह पता है कि किसने नीम के वृक्ष के बारे में यह कहाना बनाई।
      कहना थी—और उसने नीम की सुंदरता को और बढ़ा दिया—नीम के बारे में यह कहानी प्रचलित थी कि नीम का पेड़ भूतों को पकड़ लेता है। नीम का पेड़ यह कैसे करता है। पर कोई उत्‍तर नहीं मिला। शायद यह कुछ नहीं करता। भारत में कोई भी कहनी सत्‍य में बदल जाती है। या परम सत्‍य में बदल जाती है।   
      कहा जाता था कि अगर किसी को भूत लग गया हो तो अगर वह आदमी एक कील लेकर उस नीम के पेड़ में ठोक दे और ऐसा करते हुए कहे, मैं अपने भूत को यहां कील रहा हूं तो वह आदमी भूत से मुक्‍त हो जाता। उस पेड़ पर लगभग एक हजार कील लगे हुए थे। अभी भी मुझे इस बात का दुःख है हालाकि अब वह पेड़ वहाँ नहीं है।
      हर रोज लोग उस पेड़ के पास जाते। और नजदीक ही एक छोटी सी दुकान भी खुल गई भी जहां पर वे कील बिकने लगी थी। क्‍योंकि उसकी मांग बहुत थी। और महत्‍व की बात यह थी की प्रात: सभी भूत वहां जाकर गायब हो जाते थे। स्‍वाभाविक निष्‍कर्ष यही था कि भूत पेड़ में कील से ठोंक दिया गया है। इन कीलों को कोई उखाड़ता नहीं था इस डर के मारे कि वह भूत बाहर निकल आएगा। और उसे पकड़ लेगा।
      मेरे परिवार को भी इस बात का बहुत डर था कि अगर मैं उस पेड़ के पास गया तो मुझे अवश्‍य कोई न कोई भूत पकड़ लेगा। उन्‍होंने मेरी नानी से कहा कि यह अच्‍छी बात है कि वह तुम्‍हारे यहां सोता है। हमें कुछ एतराज नहीं है। वह तुम्‍हारे यहां ही खाना खाता है, यह भी ठीक है। वह बहुत ही कम, कभी-कभार ही यहाँ आता है। वह भी ठीक है। हमें मालूम है कि उसकी अच्‍छी देखभाल हो रहीं है। किंतु उस वृक्ष को याद रखना। अगर वह एक कील भी निकल लेगा तो पूरी जिंदगी परेशान होगा।
      और कहानी कहती है कि एक बार जो भूत वहां पेड़ से बाहर आ गया उसे फिर कील के द्वारा ठोंका नहीं जा सकता। क्‍योंकि उसे ट्रिक का पता चल गया है। और फिर से उसे धोखा नहीं दिया जा सकता।
      इसीलिए मेरी नानी सदा मुझे उस पेड़ से दूर रखने की कोशिश में रहती थी। लेकिन उनको यह नहीं मालूम था कि मैं उस नीम के पेड़ में गड़े हुए कीलों को उखाड़ कर उस दुकान वाले को बेच देता था। अन्‍या था उसे कौन कीलिया दे रहा था। मेरा बड़ा धंधा चल रहा था। पहले तो दुकानदार भी बहुत डर गया। उसने कहा: क्‍या, तुम यह कील पेड़ में से निकाल कर लाए हो। मैंने कहा उन भूतों से मेरी अच्‍छी दोस्‍ती है। वह मेरी बात मानते है। में उन्‍हें परेशान नहीं करना चाहता। क्‍योंकि मेरी नानी को पता चल जाता तो मुश्‍किल हो जाती। भूत मुझे बहुत प्‍यार करते है वे मेरे अच्‍छे दोस्‍त है।
      उसने कहा: यह बड़ी अजीब बात है। मैंने आज तक कभी नहीं सुना कि भूत तुम जैसे छोटे बच्‍चों से प्रेम करते है। पर धंधा तो धंधा है.......
      मैं उसे बाजार से आधी कीमत पर कीलें दे रहा था। यह उसके लिए बहुत ही अच्‍छा था। उसने सोचा कि अगर मैं कीलें निकाल लेता हूं और भूत मुझे परेशान नहीं करते तो वे जरूर मेरे अच्‍छे दोस्‍त है। उसने यह भी सोचा इस बच्‍चे से बुराई लेना अच्‍छी बात नही है। क्‍योंकि इसके दोस्‍त नाराज हो गए तो। और ये बच्चा अपने आप में एक उपद्रव है और फिर भूत भी इसकी सहायता करेंगें।
      वह मुझे पैसे देता था, मैं उसे कील देता था।
      मैंने अपनी नानी को बताया कि भूत की ये सब बातें झूठी है। वहां कोई भूत नहीं है। और मैं तो एक साल से उस नीम में पेड़ से कील निकाल कर बेचता रहा हूं। नानी को तो सहसा विश्‍वास ही नहीं हुआ। यह सून कर एक क्षण के लिए उसकी श्‍वास रूक गई और उन्‍होंने कहा: क्या तुम उन कीलों को बेचते रहे हो। तुम्‍हें तो उस पेड़ के नजदीक भी नहीं जाना चाहिए। अगर तुम्‍हारे मां-बाप को यह मालूम हो गया तो वे तुम्‍हें यहां से ले जाएंगे।
      मैंने कहा: उसकी चिंता मत करो। भूतों से मेरी दोस्‍ती है।
      उन्‍होंने कहा: तुम सारी बात सच-सच बताओ कि क्‍या हो रहा है। वह बहुत ही सरल निर्दोष महिला थीं। मैंने कहा: सब कुछ सही है और यह सब हो रहा है, पर आप उस दुकानदार से कुछ न कहें क्‍योंकि यह धंधे का सवाल है। अगर वह भाग गया या डर गया तो मेरा सारा धंधा चौपट हो जाएगा। अगर आप मेरी मदद करना चाहती है तो ऐसा कीजिए कि जब आप वहां से गुजर रही हो तो उससे बस इतना भर कह दीजिए गा कि न जाने कैसे इन भूतों की इस लड़के से इतनी दोस्‍ती हो गई हे। वह इससे बहुत प्रेम करते है। मैंने कभी उन्‍हें कभी किसी और के साथ ऐसी दोस्‍ती करते नहीं देखा। मैं तो डर के मारे उस पेड़ के नजदीक भी नहीं जाती। बस इतना उसे कह देना जब आप वहां से गूजरें।
      भारत में पेड़ के आस-पास एक छोटा सा ईटों का चबूतरा बना दिया जाता है। ताकि लोग वहां बैठ सकें। इस पेड़ के पास बड़ा चबूतरा था। वह बड़ा वृक्ष था। करीब सौ लोग उस चबूतरे पर बैठ सकते थे। और करीब हजार लोग उस पेड़ की छाया में बैठ सकते थे। वह बहुत बड़ा वृक्ष था।
      मैंने नानी से कहां: आप उस गरीब दुकानदार से कुछ मत कहना। वहीं मेरी कमाई का एक मात्र उपाय है।
      उन्‍होंने कहा: कमाई, कोन सी कमाई? क्‍या हो रहा है। और मुझे इसके बारे में तुमने कुछ भी नहीं बताया।
      मैंने कहा: मुझे डर था कि आपको चिंता होगी। पर अब मैं आपको विश्‍वास दिलाता हुं कि वहां पर कोई भूत नहीं है। आप मेरे साथ आइए, मैं आपके सामने उस पेड़ से कीलों को उखाड़ कर दिखाऊंगा और कोई भूत मुझे नहीं पकड़ेगा।
      उन्‍होंने कहा: नहीं, मैं तुम पर विश्‍वास करती हूं। ऐसे ही लोग विश्‍वास कर लेते है। मैंने कहा: नहीं, नानी, यह सही नहीं है। मेरे साथ आओ। में कील निकालूंगा। अगर कुछ गलत होगा तो मुझे होगा और मैं तो कील वैसे ही निकलने वाला ही हूं। आप आएं या न  आएं। मैं पहले ही सैकडों कीलें निकाल चुका हूं।
      उन्‍होंने क्षण भर सोचा और फिर कहा: ठीक है, मैं आती हूं। मैं ने आना पसंद करती पर फिर तुम हमेशा मुझे डरपोक समझते और वह मैं पसंद नहीं करूंगी। मैं आ रही हूं।
      नानी मेरे साथ आँगन में आई और थोड़ी दूरी पर खड़ी होकर देखने लगीं। बड़ा आँगन था। किसी समय वह घर किसी रियासत के पास था। बहुत ही सुंदर मूर्तियां नीम के वृक्ष के नीचे रखी थीं। कुछ घर में भी थी। पुराने जमाने के सुंदर नक्‍काशी वाले दरवाजे थे। आशीष को वे दरवाजे बहुत पसंद आते। बहुत आवाज करते थे पर वह दूसरी बात है। किसी पुराने आर्किटेक्‍ट ने मकान बनाया होगा। भूतों के कारण ही वह घर मेरी नानी के बहुत सस्‍ते में मिल गया था। हमें वह बहुत सस्‍ते में,करीब-करीब ना-कुछ में मिल गया था। मालिक उससे मुक्‍त होकर खुश था।
      मेरे पिता ने नानी से कहा था, आप वहां बिलकुल अकेली रहेगी, ज्‍यादा से ज्‍यादा इस छोटे बच्‍चे के साथ जो कि उन भूतों से ज्‍यादा उपद्रवी है इतने सो भूत और यह बच्‍चा, आप मुशिकल में पड़ोगी। पर मुझे पता है कि आपको नदी बहुत पसंद है। और उस जगह का मौन शांत वातावरण भी।
      यह करीब-करीब मंदिर ही था। भूतों के अलावा वहां पर कोई वर्षों से रहा ही नहीं था।
      मैंने नानी से कहा: डरिय मत। मेरे साथ आइए पर याद रखिए कि उस गरीब दुकानदार से कुछ न कहना। उसका धंधा इसी पर निर्भर है, मैं तो उसी पर निर्भर हूं। सच तो यह है काफी सारे गरीब बच्‍चें को स्‍कूल में मैं सहायता करता हूं, इन्‍हीं भूतों की वजह से। इसलिए आप किसी तरह की गड़बड़ मत करना।
      पर वे थोड़ी दूर खड़ी रहीं। मैने कहा: जरा नजदीक आइए......तब से मैं यहीं कह रहा हूं, सबसे यहीं करह रहा हूं, आओ, थोड़े करीब आओ। चिंता मत करो, ड़रो मत।
      किसी तरह उन्‍होंने नजदीक आकर देखा कि भूत की बात कोरी अफवाह थी। तब उन्‍होंने मुझसे पूछा, लेकिन यह सब होता कैसे है। क्‍योंकि मैंने सिर्फ एक नहीं हजारों लोगो को देखा है। वे काफी दूर से आते है और उनके भूत निकल जाते है। जब वे आते है तब वे पागल होते है, और जब वे जाते है—कील को बेचारे पेड़ में ठोंक कर—तब वे बिलकुल ठीक हो जाते है। यह कैसे होता है।
      मैंने कहा: अभी तो मुझे नहीं पता कि यह कैसे होता है पर मैं पता जरूर करूंगा। मैं उसी खोज के रास्‍ते पर हूं। मैं उन भूतों को ऐसे अकेले नहीं छोडूंगा।
      वह पेड़ मेरे घर के ऊपर से गली के ऊपर छाया हुआ था। रात को उस गली से कोई नहीं जाता था। यह मेरे लिए बहुत अच्‍छा था। रात को किसी तरह की कोई बाधा न होती थी। सच तो यह है कि सूरज ढलने से पहले ही लोग अपने घरों को चले जाते कि कौन जाने अंधेरे में इतने सारे भूत....     
      वह बेचारा मास्‍टर मेरी नानी के घर के पीछे कुछ मकान छोड़ कर रहता था। उसे उस गली से जाना पड़ता था। उसके लिए कोई और रास्‍ता न था। मैंने उस रात इंतजार किया। यह कठिन था क्‍योंकि दिन में लोग वहां से गुजरते थे। अंत: दिन में भूतों से कुछ भी करवाना कठिन था। पर रात को मैं कर सकता था। मैंने उस रात एक लड़के को फुसला कर उस मास्‍टर के घर भेजा। लड़के को जाना पडा। उस मोहल्‍ले के लड़कों को मेरी बात माननी ही पड़ती थी। नहीं तो मैं उनके लिए मुसीबत खड़ी कर देता था। इसलिए मैं जो कहता वे करते। अच्‍छी तरह से जानते हुए कि वह खतरनाक होगा क्‍योंकि उन्‍हें भी भूतों मैं भरोसा था। 
      मैंने उस लड़के से कहा: तुम जाकर उस मास्‍टर से कहो कि तुम्‍हारे पिता बहुत बीमार है और उनके बचने की उम्‍मीद नहीं है। और चह बहुत गंभीरता से कहाना। उसके पिता दूसरी गली में रहते थे।
      स्‍वभावत: जब पिता मर रहे हों तो भूतों के बारे में कौन सोचता है। यह सुनते ही यह मास्‍टर जल्दी से उस और चला पडा। उसके हाथ में लैंप था। और मैंने सब इंतजाम कर रखा था। मैं तो अपने पेड के ऊपर चढ़ कर बैठा हुआ था। और वह मेरा पेड़ा था, मुझे कोई नहीं रोक सकता था। जैसे ही वह मास्‍टर अपने लैंप के साथ उस नीम के पेड़ के नीचे आया, उसने सोचा होगा कि कम से कम लालटेन साथ ले चलो तो भूत करीब नहीं आएंगे और अगर आए तो मैं देख कर समय रहते भगा दूँगा।
      मैं पेड़ से बस कूद पड़ा, उस शिक्षक के ऊपर ही। फिर जो हुआ वह सचमुच देखने जैसा था, अद्भुत। ऐसा कुछ जिस की मैंने कल्‍पना भी नहीं की थी......( ओशो जोर से हंस पड़े).....उसकी पतलून खुल कर नीचे गिर पड़ी। वह पतलून के बिना ही भागा। अभी भी मैं देख सकता हूं....(ओशो बहुत जोर से हंसने लगे).....
--ओशो

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