सुबह
मम्मी—पापा ने हमारी कारस्तानी देखी तो दंग रह गये। जहां देखो वहीं
मिट्टी—मिट्टी का ढेर लगा था। पैरो से खोद—खोद कर फैंकने के कारण दूर आँगन तक भी
मिटटी बिखरी हुई थी। हमनें इतना गहरा गढ़ा खोद दिया, और ये तो हमारा
शोभाग्य ही था कि उसके उपर जो पत्थर रखे थे वो इसी तरह से रुके हुए थे। और उसके
नीचे से खोद कर खरगोश निकाल लिया गया था। उसके बाल और खून वहां चारो और बिखरा हुए
थे। मेरी और जब पापा जी ने जब देखा वह तुरंत समझ गये कि ये कारस्तानी किस की हो
सकती है। पापा जी ने मुझे देखते हुए थोड़ा मुस्कुराये, मैं
तुरंत समझ गया कि पापा जी को सब पता चल। अब बात छुपाने से कोई लाभ नहीं है। और मैं
अपनी पूछ हिलाते हुए पापा जी की और चल दिया।
मैंने
आपने को सुकेड़ कर गोल मोल कर लिया और अपने कान भी बोच लिए। पापा जी ने मेरी और
देखा और समझ गये कि मैं बहुत बुरी तरह से डर गया हूं। सच पूछो तो मैं इतना डर गया था कि मुझे अपने दिल की धडकन खुद ही सुनाई दे
रही थी। वो ऐसे धड़क रहा था जैसे किसी लुहार की धौकनी हो या में मीलों दौड़ कर आया हूं। पापा जी मेरे उपर झुके, तो मैं एक दम डर
के मारे जमीन पर लेट गया। मैंने सोचा अब लगा थप्पड़…….
पर उन्होंने मेरे सर पर प्यार से हाथ फेरा, और
धीरे—धीरे उसे पूंछ तक ले गये। उन्होंने फिर दोबारा ऐसा किया। मैं पीटने के लिए
तैयार हो गया। पर क्या हम जो सोचते है वह सब सही होता है,
शायद कभी नहीं...पर फिर भी ने जाने क्यों प्रत्येक प्राणी अपने को हमेशा सही
समझता आया है। वह छोड़ नहीं पाता कभी पूर्णता के हवाले, मैं
पीटने के लिए तैयार था पर ऐसा नहीं हुआ।
पापा जी का हाथ बार—बार मेरी पीठ पर कहीं—कहीं रूक कर
कुछ देखता और फिर आगे बढ़ जाता। मैं तो इतना डरा हुआ था, की मुझे उनके प्यार और दुलार की छुअन का आनंद भी नहीं
मिल पा रहा था। अचानक पापा जी ने मम्मी जी को कहां देखो पोनी के शरीर पर ये कैसी
गाँठें पड़ गई है। कैसे शरीर की चमड़ी उभर खड़ी हो गई है और उभर आई है। फिर टोनी
के पास जाकर देखा उसके शरीर पर ऐसे कुछ भी लक्षण नहीं थे। हम तीनों ने एक ही समय
पर एक ही खरगोश को खाया है पर तीनों के शरीर पर उसका अलग—अलग प्रभाव क्यों हुआ।
क्या ये हमारी शारीरिक संरचना के कारण। या उसके प्रतिरोधक शमता से लड़ने के कारण से।
उस समय तो मैं कुछ भी समझ नहीं पाया पर अपनी पिटाई न
होने से खुशी जरूर थी। दो ही चार दिन के अंदर मेरे पूरे शरीर में खुजली शुरू हो
गई। इतनी खुजली होती की में आपको बता नहीं सकता। खुजाते—खुजाते वहां से खुल तक
निकल देता पर खुजली है के खत्म ही नहीं होती थी। फिर उस खुजली की हुई जगह जख्म
का दर्द शुरू अलग से हो जाता था। लगता था पूरे शरीर की चमड़ी उतार कर फेंक दूँ।
मैं सारा दिन खुजाते—खुजाते पागल हुआ रहता था। पर देखिये हमारी लाचारी हमारे पैर
तो एक ही स्थान पर लगातार खुजली करते रहते थे। जहां तक मेरे पैरो की पहुंच थी वो
एक मशीन की तरह अपना काम जाने अनजाने करते रहते थे।। खुजली करने से इतना अच्छा
लगता, मानो आपको स्वर्ग ही मिल रहा हो। पर कुछ ही
देर बाद वहां पर इतनी ही पीड़ा होती की जैसे किसी ने आग लगी दी हो। पर पीड़ा और
दुःख तो बाद की बात थी।
इस समय तो खुजाने का मजा
ले लिया जाये। शरीर में खुजली दिन प्रति दिन बढ़ती चली गयी। और शरीर जगह—जगह से
गाँठ—गठीला हो गया था। पूरे दिन ऐसा लगता की जैसे अनंत कीड़े मेरे शरीर पर रेग रहे
है। कहीं पर भी चेन नहीं मिलता था। न ही कुछ खाने को मन करता था। न ही नींद आती
थी। मैं बहुत बेचैन रहने लगा। नींद न आने से मैं चिड़—चिड़ा भी होता जा रहा था। न ही
पोनी के साथ खेलने को मन करता था। और नहीं किसी का पास आना अच्छा लगाता था। बच्चे
भी जब पास आते या हाथ लगा कर मुझे उठने की कोशिश करते तब में उन पर गुर्रा कर
पड़ता था। और भाग कर चार पाई के नीचे जा कर छुप जाता।
मुझे कई बार डर भी लगता
था कि शायद में उन्हें काट लूं। लगभग मेरी अवस्था पागल जैसी हो गई थी। मेरा मस्तिष्क
धीरे—धीरे बंद होता जा रहा था। जैसे घर के आँगन में धूप सरक रही हो और धीरे—धीरे
उसपर काली साया फैलती जा रह है। जिसके कारण वह पर रखी प्रत्येक वस्तु उस छांव के
कारण धुँधली पड़ती जा रही है। एक दिन पूरे आँगन में छांव हो जोगी फिर शायद मैं
किसी को पहचान नहीं पाऊंगा। फिर मेरी कोई मदद करना चाहे तो भी नहीं कर सकेगा।
छत
पर जो कमरा था उसके सामने भी बड़ा सा बरांडा था। वही सब चारपाई बिछा कर सोते थे।
मेरा और टोनी के लिए अलग से एक छोटी सी चारपाई बिछा कर उस पर बिस्तरा लगा दिया
जाता था। जिस पर मैं और टोनी बड़े मजे से साथ—साथ सोते थे। और अपने पर गर्व करते
थे की देखो हमारा भी अलग से भैया ओर दीदी की तरह बिस्तरा है। पर इन दिनों एक अजीब
सी सनक मेरे दिमाग में भर गई थी की में किसी के भी बिस्तरे पर चढ़ कर सो जाता था।
ने क्या करण की मैं दिन ब दिन चिड़—चिड़ा होता जा रहा था।
किसी का हाथ तक लगाना
मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगता था। फिर ये पास चिपक कर सोने का कौन सा नया राग।
मुझपर सवार हो गई ये, एक सनक सी हो गई, दिमाग में एक उलझन सी
भरने लग गई। किसी ने जब कोई काम के लिए मना कर दिया तो एक जिद सी चढ़ जाती थी की
वहीं करना है। फिर ये सही गलत की समझ का मुझे कोई पता नहीं होता था। मम्मी—पापा
के बिस्तरे पर न चढ़ कर मैं बच्चों के बिस्तरे पर उन से चिपक कर सोता। मम्मी
ने कई बार मुझे डांटा फटकार पर मैं नहीं माना। अब उन्हें फिकर हो गई की बच्चों
के बिस्तरे में सोना तो गलत है कहीं उन को भी ये बिमारी न लग जाये। आज में भी
महसूस करता हूं की वो सब गलत था। पर उस समय मुझे ये सब नहीं दिखाई सुनाई दे रहा
था।
मैं बहुत जिद्दी हो गया
था। आखिर दुःखी हो कर पापा जी ने मेरा बिस्तरा नीचे आँगन में लगा दिया। पर मैं तो
उस पर पैर रखने को भी तैयार नहीं था और
उपर चढ़ कर सोने के लिए ही तैयार नहीं था। आपने एक कहावत सुनी होगी कि गीदड़ की
मौत आती है तो वह गांव की और चल देता है। अब ये मेरी हरकत मेरी खुद की गर्दन पर
छुरी चलने वाली बात नहीं तो और क्या था?
पापा जी ने एक आखरी उपाय किया। हमारी सीढ़ियाँ
खुली थी,यानी कि उन पर छत नहीं थी और न ही दरवाजा। अगर
वो भी होता तो कुछ किया जा सकता। उसे बंद कर दिया जाता मुझे उपर चढ़ने से रोकने के
लिए। उन्होंने एक कारगर उपाय सुझा। एक लोहै का ड्रम जो करीब चार फिट उचा होता है।
उसे उन्होंने सीढ़ियों के बीच में रख कर रास्ते को रोक दिया। मेरा बिस्तरा नीचे
लगा था। मैं वहां अकेला नहीं रहना चाहता था।
खास कर रात को दिन में तो
मक्खी यो से बचने के लिए किसी अंधेरी जगह पर छुप कर पडा रहता था। पर रात को अकेला
रहने में एक असुरक्षा का भाव बना रहता था। पर में ये नहीं समझ पा रहा था। कि कही
मेरी इस हरकत के कारण मुझे इस घर से न हाथ धोना पड़ जाये। और फिर दिन रात अकेले ही
गुजारनी पड़े। पर पशु इतना कहां सोच पाता है। ये तो मनुष्य में भी कोई विरल ही
सोचता है। पर उस समय मेरी जिद के आगे कोई भी बाधा मुझे नहीं रोक सकती थी।
मैं रात को उस ड्रम न चढ़
पाने के कारण रोता रहा। और चढ़ने की भरपूर कोशिश कर रहा था। मुझे न अपने उपर दया आ
रही थी। न अपने इस कृत्य पर शर्म। दिन भर मम्मी—पापा इतनी मेहनत मशकत करते है। न
ही उन्हें आराम का समय मिल पाता है। नहीं वे करते है। और रात भी चार पाँच घंटे
सोते है और में मुर्ख उन्हें रात भी चेन से नहीं सोन दे रहा था। जोर—जोर से चिल्ला
कर रो रहा था। और चढ़ने की कोशिश कर रहा था। और आखिर घंटे दो घंटे की मेहनत मशकत
के बाद में उस पर चढ़ ही गया। और पहुंच गया अपनी मंजिल पर।
पूरे
घर की नाक में दम कर दिया था मैने। हानि तो उसी दिन से गायब था, न जाने कहां निकल गया। शायद उसे भी मेरी की तरह कुछ बिमारी हो गई थी।
हम कितनी मुसीबतों को खुद ही अपने उपर औड लेते है आ बेल मुझे मार। क्या जरूरत थी।
उस खरगोश को खाने की क्या खाने की यहां कोई कमी थी क्या खाने की। पर नहीं हमे चेन
कहां। रात भर जो मैंने सरकस किया और पूरे घर को सताया। उस के कारण मुझे बनवास का
हुक्म सुना दिया गया। मणि दीदी और पापा जी उदास थे। वरूण और हिमांशु भैया अभी ना
समझ थे या शायद उन्हें पता नहीं था। पर वो बेचारे बच्चे थे, लाचार थे। छोड़ना तो कोई नहीं चाहता था। मेरी हरक ही
मुझे लिए डुबो रही थी। मम्मी ने फैसला कर लिया कि कल ही इस बिमारी को यहां से उन्ही
लोग के हाथा वहीं जंगल में भेज दिया जाये जहां से इसे लाया गया था।
चाहे उसे पचास—सौ रूपये
ही क्यों न देने पड़े। और उसे कह दिया गया कि इधर उधर बिलकुल मत छोड़ना अगर हमें
पता चल गया। तो ठीक नहीं होगा। कम से कम मरे तो अपने परिवार के साथ रह कर मेरे।
अभी कोई ज्यादा दिन नहीं हुए है। इसकी मां इसे पहचान लेगी। और कहीं नहीं छोड़ना
नहीं तो जंगल इतना बड़ा और खतरनाक है कि यह एक रात भी जीवित नहीं रह पायेगा। और ये
पाप हम नाहक आपने सर पर नहीं लेना चाहते। अब मुझे चुराना जितना कठिन था, उससे कठिन मुझे मेरी मां को सौपना। क्योंकि चुराया
तो गया था पीछे से जब मां नहीं थी और छोड़ना होता उसके पास जब वो हो। पर क्या पता
वो खुश हो या अपना गुस्सा इन लोगों पर उतारे।
इस शर्त के कारण वो थोड़ा डर गये होंगे। कि एक
तो अब ये खुद इतना बड़ा हो गया है। कि वहां जायेगा नहीं अगर किसी तरह से चला भी
गया तो इसकी मां हमे जरूर पहचान लेगी। और शायद वह.....वो लोग डर गये और कल आने की
कह कर चले गये। अगले दिन भी नहीं आये। बच्चे रोज मुझे देख कर स्कूल जाते कि शायद
वे जब स्कूल से वापस आये तब पोनी वहां नही होगा। पर में मिल जाता तो बहुत खुश हो
जाते। वो तीन दिन नहीं आये। शायद उस दिन रविवार था। सभी बच्चे घर पर ही थे।
मम्मी का पार सातवें
आसमान पर था। मेरी हरकत दिन प्रति दिन बढ़ती ही जा रही थी। उस दिन सब ने निर्णय कर
लिया कि आज हम खुद ही इसे इसके हाल पर छोड़ कर आयेंगे। बच्चें सुबह से ही मुझे
बिदा करने के लिए तैयार हो कर बैठ गये। कि कब पापा जी दुकान से घर आये और हम पोनी
को जंगल में ले कर जाये। उनके चेहरो पर मायूसी और उदासी साफ दिखाई दे रही थी। इतने
दिनों इस घर में रहा अब बिदा होना है। पर ये सब मेरी ही गलती थी उन लोगों का इस
में कोई कसूर नहीं था। समझ मैं भी गया पर अपनी हरकत से बाज नहीं आ रहा था। वहीं
कुत्ते के पूछ वाली बात।
पापा जी ने आ कर घर की घंटी बजाईं। सब के दिल की
धड़कन एक दम से तेज हो गई। मैं भी भाग कर अंधेर कोने में जा कर दूबक गया। मम्मी
जी भी क्रोध और पीड़ा के भावों को अपने चेहरे पर छुपाने की नाहक कोशिश कर रही थी।
और बार—बार ये दिखा रही थी कि उसे कोई दुःख नहीं हो रहा है। पर मैं जानता था। सबसे
ज्यादा दुःख मम्मी जी को ही हो रहा है। पापा जी के हाथ में एक पिंक रंग कि एक
शीशी थी। और एक मरहम कि टयूब। बच्चे आज शायद पापा जी को आते देख कर पहली बार
उदासी महसूस कर रहे थे। और जंगल में जाने की जो प्रसन्नता हर दिन उनके चेहरे पर
होती थी आ गायब थी।
पापा जी ने मम्मी को
कहां की थोड़ा गर्म पानी एक बाल्टी में भर दो और में ये डिटोल के दो ढक्कन भी डाल
देना। ये खुजली के लिए पिंक दवाई है। याद है हिमांशु को जब खसरा हुआ था। वह बहुत
खुजाता रहता था। तब यही तो दवा लगाने के लिए दी थी। और ये मरहम मैं डा0 घोष से बात
चीत कर के ही लाया हूं। वो कह रहे थे आराम हो जायेगा। फिर एक बार कोशिश कर के
देखने में क्या बुराई है। अगर वो लोग दो—तीन दिन से इसे लेने नहीं आ रहे है तो
प्रकृति की गोद में क्या छुपा है। ये हमे थोड़ा ही पता है। पर कोई तो कारण होना
ही चाहिए। वरना तो पोना को गये आज तीन दिन हो गये होत। पूरे घर में खुशी की लहर
दौड़ गई। मम्मी का भी मन नहीं था मुझे भेजने के लिए शायद सबसे ज्यादा पत्थर उन्होंने
ही अपने सिने पर रख कर ये फैसला किया था।
सब
बच्चो को काम मिल गया। मेरे नहाने की सब तैयारी कर के मुझे चारपाई के नीचे से
निकालने की नाकाम कोशिश चलती रही। ये एक
नई मुसीबत, एक तो पहले ही मैं पानी से इतना डरता था। और
उपर से ये बिमारी। पर पापा जी ने मेरे पास आ कर मुझे प्यार से छुआ और कहां चल
बहार निकल। में थोड़ा गुर्रा या पर पापा जी नहीं डरे क्योंकि वो जानते थे ये काम
मुझे ही करना है अगर में ही डर गया तो फिर पोनी का बचना बहुत मुशिकल हो जायेगा।
उन्होंने प्यार से मुझे
पीठ से पकड़ कर बहार निकल लिया मैं ग़ुर्राता रहा मम्मी ने मुझे डांटा कि तुझे
शर्म नहीं आती जो तेरा भला कर रहा है उसे ही गुर्रा रहा है। मेरे गले में एक चेन
पहना दी और मुझे गर्म पानी से नहलाया शुरू कर दिया। जहां पर मैंने खुजली करके जख्म
कर रखे थे वहाँ पर वह साबुन थोड़ा दर्द कर रहा था। पर में अंदर से ये जानता था। ये
जो भी हो रहा है मेरी भलाई के लिए हो रहा। इस लिए मुझे क्रोध भी आ रहा था और अंदर
से अच्छा भी लग रहा था। कि देखो मुझ जैसे धूर्त के लिए भी इन लोगो के मन में
कितना प्यार है।
नहला
कर मुझे एक दरी पर धूप में बिठा दिया गया। मैने उस पर खूब रगड़म्म पटटी की। और
चाट—चाट कर अपने शरीर को सुखाने लगा। जब मेरा शरीर सुख गया। तब दीदी और पापा जी ने
वो पिंक दवा मेरे शरीर पर लगानी शुरू की। मैं थोड़ा डरा। पर ये डरना कम था डरने का
दिखावा ज्यादा था। पूरे शरीर पर दवाई लगते—लगते वह पूरी शीशी खत्म हो गई। फिर वह
मरहम खोल कर मेरी गाँठों और जहां पर में खुजली करके मैंने खून निकाल दिया था वहाँ
पर लगाई गई। पहली दवा से शरीर में कुछ ठंडक से महसूस हुई। पर में उसे बार—बार
चाटनें की कोशिश कर रह रहा था। दीदी मेरे मुहँ को पकड़ कर हटा देती थी। दवाई लगा
कर पापा जी मेरी गर्दन को कुछ देर तक पकड़ रहे बीच मैं छूडा कर भागने की नाकाम
कोशिश भी करता रहा। पर आखिर मुझे छोड़ दिया गया। मैने सबसे पहले अपने शरीर को खूब
चाटा। पर ये सब में एक मशीन की तरह कर रहा था।
मेरी खुजली वाली जगह पर
अब बहुत आराम था। मुझे इन कई दिनों बाद सच अच्छा लग रहा था। थोड़ी देर के ही लिए
मैं आपने दर्द को और दुःख को भल गया। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे कोई जलती हुई गर्म
चीज को अचानक ठंडे पानी में डाल दिया गया है।। और उसकी तपीस और जलन एक छू मंतर की
तरह क्षण में न जाने कहां गायब हो गई है।
मम्मी
ने मेरे लिए हल्दी वाला दूध तैयार कर मुझे पीने को दिया। जो कई दिनों बाद मुझे अच्छा
लगा और मेरा पीने का मन हुआ। टोना ये सब दुर—दुर से डर सहमा देख रहा था। वह एक तो
मुझसे ही डर रहा था। कि न जाने मुझे क्या हो गया है। मैं दूध पीकर एक अंधेरे कोने
में जा कर सो गया। आज कई दिनो बाद मुझे मेरा शरीर फूल सा हल्का लगा रहा था। मैं
जान रहा था की मैं जितनी भी थोड़ी बहुत खुजली कर रहा हूं आदत की वजह से ही है। अब
उन जगहों पर कम ही खुजली हो रही थी। अब यह दवा मुझे दिन में दो बार लगाई जाती था।
मैं आपने आप को अच्छा महसूस कर रहा था। मेरी खुशी तो लोटी इस घर में भी एक बुझी
रोशनी फिर लोट आई सब मेरा बहुत ख्याल रखते थे।
टोनी भी आ कर मेरी शरीर
को सूंघ कर देखता और मेरे मुहँ को भी चाट कर कुछ कहने की कोशिश करता। मत घबरा मेरे
दोस्त देखना तू जरूर ठीक हो जाओगे। अब हम दोनों दोस्त मिल कर फिर से भैया के
खिलौने से खोलते भी थे। पर में ज्यादा देर उसका साथ नहीं दे पाता था। इन दिनों
मुझे आइसक्रीम खूब खिलाई जाती थी। टोनी को भी दी जाती थी। पर मुझे ज्यादा दी जाती
थी। वो जैसे—जैसे मैं खाता था मेरे शरीर के साथ मेरे पेट में भी जलती आगा को ठंडक
महसूस होती थी।
शायद उस में कोई दवाई भी
डाली जाती थी। जिस की दुर्गंध मुझे आती थी और जूबान भी कड़वी हो जाती थी। मैं
समझता ये मेरी बिमारी के कारण मेरी जीभ का स्वाद खत्म हो गया है। पर एक दिन जब
मेंने टोनी की छोड़ी हुई आइसक्रीम चाट कर देखी तब मुझे पता चला कि मेरी आइसक्रीम
में कुछ कड़वापन या कश यापन सा था। पर वो आइसक्रीम लगती इतनी स्वाद थी की में उसे
छोड़ ही नहीं सकता था। वो कड़वापन उसके स्वाद में ऐसे घूलमिल जाता था कि पता ही
नहीं चलता था।
लेकिन
अचानक एक दिन हानि आ गया। एक बार तो देख कर हम में से किसी ने उसे पहचाना ही नहीं।
उस शरीर के सारे बाल उतर गये थे। उसके इतने सुदंर सफेद बदामी बाल, जो रेशम कि तरह मुलायम ने जाने कहा चले गये थे। बाल
रहित उसका शरीर बहुत कुरूप लग रहा था। मैंने सोचा हाय राम ये क्या हो गया। क्या
इसकी ये हालत उसी खरगोश ने की है। चमड़ी पुर शरीर की सुकड़ कर गाँठ—गठिला हो गई
थी। बाल रहित उसे देखना कैसा लगता होगा। मैं आपको बता नहीं सकता। जब कुदरत ने
हमारे शरीर पर बालों को उगाया है तो जरूर इन बालों की हमारे दैनिक जीवन पर कुछ तो
जरूर प्रभाव पड़ता ही होगा। एक तो हमारे बाल हमें शारदी, धूप, और बरसात से बचाते है।
जो सीधी हमारी चमड़ी पर नहीं पड़ती। और दूसरा सबसे बड़ा जो फायदा है वह लड़ाई से
समय जब कोई हमे दांतों से पकड़ता है तो चमड़ी से पहले बाल हमारी सुरक्षा करते है।
कितना कमजोर लग रहा था
हानि बालों रहित। मम्मी जी अंदर से आई और हानि की ये हालत देख कर उसे भी यकीन
नहीं हो रहा था। वो तो शायद पहचान में ही नहीं पाती अगर उसके सर और कान पर थोडे
बाल न बचे होते। वह फटाफट अंदर गई ओर एक वर्तन में दही में पीला—पीला सा डाल कर लाई हानि कोने में जो
मिटी वाली क्यारी थी उस में छुप कर बैठ गया था। शायद मक्कियाँ भी अब उसे बहुत
सताती होंगी। उसे देख कर मुझे उस पर दया भी आ रही थी। कि ये सब मेरे कारण हुआ है।
ना में उस दिन वो सब खुराफात करता और ने मेरी ये हालत होती और न ही हानि की। वह
अच्छा बहुत था। ये घर पहले उसी का तो था। जिस में हम आये थे। पर उस ने कभी हमे
मार नहीं।
पहले तो साथ खेलता भी था।
पर वह थोड़ा बूढ़ हो गया था। इस लिए वह जल्दी ही थक जाता था। पर वह नाराज हम
लोगों से कभी नहीं हुआ। और न ही मम्मी पापा ने उस की किसी चीज में कमी की। उस का
खाना और दुध जो उसके खाने के बाद बच जाता हम दोनों मिल कर खाते थे। पर वह कभी कुछ
नहीं कहता था। शायद इसका सबसे बड़ा कारण था, इस परिवार का प्यार जो
उसे भर पूर मिला था और पेट भर कर खाना। पर अब उस की ये हालत.....मैं इतना डर गया
की। मानो ये सब मेरे साथ ही हो गया। क्योंकि मैं अब जान गया था ये हालत अब मेरी
भी होने वाली है।
भैया
और दीदी भी उस की ये हालत देख कर दंग रह गये। और सब यही कह रहे है। ये पोनी ही आफत
की जड़ है। इसी के कारण हानि की ये हालत हुई है। बात भी सत्य थी पर अब मैं केवल
पछता ही सकता हूं और जो मैंने बोया है उसे भोग सकता हूं। और वो मैंने भोगा जीवन के
आखिरी क्षण तक एक गलत कदम भी हम कहां से कहां पहुंचा सकता है। एक सही कदम वो भी था
जब में इस घर में आया और एक गलत कदम ये भी है जब मैंने खरगोश को निकाल कर खाया।
आगे देखते है इस का अंजाम जो की बद से बदतर हो या कुछ और......
भू........भू........भू.....आजबस।
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